Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 117
________________ महामंत्र : मिापत्तियां कसौटियां : ६७ दिशा में हमने कदम बढ़ाया है उस दिशा में हम आगे बढ़ते जाएंगे और एक दिन गन्तव्य तक पहुंच जाएंगे। जिस ध्येय की प्राप्ति के लिए हमने साधना प्रारंभ की है, वह ध्येय उपलब्ध हो जाएगा। ध्येय और ध्यान के बीच की कोई दूरी नहीं रहेगी। इतना दृढ़ विश्वास जब व्यक्ति की चेतना में जाग जाता है तब ये शक्तियां निश्चित ही उसे प्राप्त हो जाती हैं, परिणाम उसके पैरों में लुटने लगता है और वह व्यक्ति स्वयं परिणाममय बन जाता चावल कच्चा है। आंच पर चढ़ाया ।. पकने लगा। ठीक समय हुआ और वह सिद्ध हो गया। जितने भी खाने के पदार्थ हैं, पकने पर सब सिद्ध होते हैं। ध्यान भी सिद्ध होता है और मंत्र की आराधना भी सिद्ध होती है, साधना चरम बिन्दु तक पहुंचती है, तब निश्चित ही सिद्धि होती है। किन्तु साधना और सिद्धि के बीच की जो दूरी है, उसे बहुत समझदारी के साथ सम्पन्न करना चाहिए। मध्यावधि की यह यात्रा बहुत सोच-समझकर होनी चाहिए। यह यात्रा का विवेक निष्पत्ति को उपलब्ध कराने वाला विवेक है। यदि यात्रा का विवेक ठीक नहीं होता है तो निष्पत्ति कभी नहीं हो सकती। यात्रा यदि निश्चित दिशा में चलती है तो निष्पत्ति निश्चित ही होती है। इसमें अविश्वास करने की कोई बात नहीं है। ___ मंत्र की आराधना की अनेक निष्पत्तियां हैं। वे निष्पत्तियां आंतरिक भी हैं और वाह्य भी हैं। मानसिक भी हैं और शारीरिक भी हैं। मंत्र की आराधना से जव मंत्र सिद्ध होने लगता है तब कुछ निष्पत्तियां हमारे सामने प्रकट होती हैं। पहली निष्पत्ति है-मन की प्रसन्नता। जैसे-जैसे मंत्र सिद्ध होने लगता है, मन में प्रसन्नता आने लगती है। हर्ष नहीं, प्रसन्नता। हर्ष और प्रसन्नता में बहुत बड़ा अन्तर है। किसी प्रिय वस्तु की उपलब्धि होती है तव व्यक्ति को हर्ष होता है। जहां हर्ष होता है वहां शोक भी अवश्य होगा। दोनों साथ-साथ चलते हैं। यह न मानें कि हर्ष तो हो और शोक न हो। यह भी नहीं हो सकता कि शोक हो और हर्ष न हो। कभी हर्ष होगा तो कभी शोक भी होगा और कभी शोक होगा तो कभी हर्ष भी होगा। हर्ष और शोक एक द्वन्द्व है। मंत्र की आराधना के द्वारा जो प्राप्त होता है वह है चित्त की प्रसन्नता, मन की निर्मलता। प्रसन्नता हमारे अन्तःकरण की निर्मलता है। इसमें मैल का अवकाश ही नहीं रहता। न हर्ष का मैल होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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