Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 141
________________ जिज्ञासितम् : १२१ प्रश्न-ॐ के स्थान पर अहम् को महत्त्व देने का मूल कारण क्या है? उत्तर---ॐ का महत्त्व भी कम नहीं है और अर्ह का महत्त्व भी कम नहीं है। दोनों का अपना महत्त्व है। हमारा संसार सापेक्षता का संसार है। यहां किसी एक का असीम महत्त्व नहीं होता। प्राणशक्ति को जागृत करने के लिए अर्ह का जितना महत्त्व है उतना ॐ का नहीं है। जैन परम्परा में पंच परमेष्ठी की आराधना ॐ के रूप में की जाती है और नमस्कार मंत्र के रूप में भी की जाती है, इसकी उपासना नाना रूपों में की जा सकती है। किन्तु इनका अलग-अलग उपयोग है। भिन्न-भिन्न शक्तियों को जागृत करने के लिए भिन्न-भिन्न रूपों में पंच परमेष्ठी की आराधना करनी होती है। प्राणशक्ति को जागृत करने के लिए 'अर्ह' का बहुत उपयोग है। हं, हुम्, ह्रीं, हूं-इनका बहुत बड़ा महत्त्व है। प्राणशक्ति के जागरण के लिए अर्ह का चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रश्न-हम शरीर का आलंबन नहीं लेते, उसे देखते हैं। क्या यह सही उत्तर--आलंबन लेना और देखना-दोनों एक बात है। आलंबन की भाषा में कहें तो आलंबन है और देखने की भाषा में कहें तो देखना है। मंत्र का आलंबन कहां लेते हैं, उसे देखते हैं। मंत्र के उच्चारण की बात तो बहुत स्थूल है। उसे भी हमें देखना है।। यह तो जब हम प्रयोग करेंगे तव पूरा समझ में आ जाएगा। शरीर में प्रकंपन हो रहे हैं। सामान्यतः आपको कुछ भी पता नहीं चलेगा। नाड़ी पर हाथ रखते ही प्रकंपन महसूस होने लगेंगे श्वास चल रहा है। नाक पर अंगुली रखने से उसका आभास होने लग जाता है। हमारे भीतर अनेक प्रकार की ध्वनियां हो रही हैं, किन्तु हमें उनका पता ही नहीं है। हम ध्वनियों को सुन सकते हैं यदि हमारी प्राणशक्ति विकसित होती है। यदि हमारी एकाग्रता विकसित हो और हम शरीर में होने वाली, विशेषतः सुषुम्ना में होने वाली ध्वनि को सुन सकें, तो हमें ज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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