Book Title: Eso Panch Namukkaoro
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 130
________________ ११० : एसो पंच णमोक्कारो कभी नहीं बनता। हमारा सामाजिक जीवन बनता है भाषा के द्वारा, शब्द के द्वारा। ज्ञान और भाषा का जब से योग हुआ है तब से मनुष्य बाह्य जगत् में आया और उसने अपना विस्तार किया। शब्द ने मनुष्य को विस्तार दिया, बाह्य जगत् का निर्माण किया और एक द्वैत पैदा किया। मनुष्य दो जगत् में जीने वाला प्राणी बन गया। ज्ञान अपने-आप में स्थाप्य होता है। उसके द्वारा किसी को भी अभिव्यक्ति नहीं दी जा सकती। केवल जाना जा सकता है, पर अपना जाना हुआ दूसरे तक नहीं पहुंचाया जा सकता। ज्ञान जब दूसरे तक नहीं पहुंचता तब समाज नहीं बनता। समाज का मूल आधार है अभिव्यक्ति, ज्ञान का विनिमय, प्रत्येक के ज्ञान का प्रत्येक तक पहुंचना।। अभिव्यक्ति के दो साधन हैं। शास्त्रीय शब्दावली में उन्हें अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत कहा जाता है। हम अपने ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाते हैं या तो अक्षर के द्वारा या अनक्षर के द्वारा-संकेत के द्वारा। अंगुली का एक इंगित किया जाता है और दूसरा व्यक्ति मन के भाव को जान लेता है। तर्जनी हिलती है और सामने वाला व्यक्ति तर्जना का अनुभव कर लेता है। अंगूठा हिलता है और सामने वाला व्यक्ति अपने प्रति किए जाने वाले व्यंग्य का अनुभव कर लेता है। हमारे शरीर और अवयवों के इंगित अपना अर्थ समझा देते हैं। फिर भी वह अनक्षर श्रुत इतना कम अर्थ समझा पाता है कि उससे हमारा पूरा व्यवहार नहीं चलता, बहुत थोड़ा व्यवहार चलता है। यदि यह अनक्षर श्रुत ही होता, यदि संकेतों के माध्यम से ही मनुष्य अपने मन की भावनाओं को व्यक्त कर पाता तो वह आज के विकास बिन्दु तक कभी नहीं पहुंच पाता। विकास का बड़ा स्रोत है—अक्षरश्रुत । आज जितना विकास हुआ है, उसका माध्यम है अक्षर, शब्द या भाषा। भाषा के द्वारा अपने मन की बात को व्यक्त करने में सहज सुविधा होती है और मनुष्य अपनी सारी भावना को दूसरों तक पहुंचा देता है, दूसरों को समझा देता है। ज्ञान और विज्ञान का समूचा विकास, संस्कृति का समूचा विकास, मानव जाति का समूचा विकास भाषा के माध्यम से हुआ है। इसकी दार्शनिक प्रक्रिया को भी समझ लें। हमारे भीतर चेतना है। वह अपने-आप में सक्रिय रहती है। बाह्य वस्तु के लिए निष्क्रिय भी रहती है। चेतना की सत्ता एक लब्धि है, एक उपलब्धि है। वही चेतना जब बाह्य जगत् को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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