Book Title: Epigraphia Indica Vol 20
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 55
________________ EPIGRAPHIA INDICA. ICA. [VOL. XX. Line 12 तोयं सुधाशीतलं । साध्वी चाक्षयनीविका भगवते वु(बु)चाय राहामने मालादेन यथोक्तवंशययसा तेनातिभक्त्या स्वयं [1] पादशात्स्फीतशोल श्रुतधवलधि, 13 यो भिक्षुसकस्य भूयो दत्तन्तेनैव सम्यग्व(ग्ब) हुतदधिभिव्यञ्जनैर्युक्तम (म)नं । भिक्षुभ्यस्तञ्चतुर्यो [व]हुसुरभि चतुर्जातकामोदि नित्यं तोयं स[] विभक्तां पुनरपि 14 विमलं भिक्षुसङ्गाय दत्तम् ॥[es] तेनैवातकर्मणा निजमिह क्रीवा... [2]सहान्तिकान्मुक्ता चोवरिकां प्रदाय विधिना सामान्यमेकन्तथा । कालमप्रेरयितुं सुखे. , 15 न लयनन्दत्तं स्वदेशम्विना तेभ्यो नई रिकावधेच परतः शाक्यात्मजेभ्यः पुनः ॥[१०॥*] दानं यदेतदमलङ्गणशालिभिक्षुपूणेन्द्रसेनवचनप्रतिवो(बो) धितेन । तेन प्रतीत, 16 .यशसा भुवि निर्मलाया मात्रा व्यधायि शरदिन्दुनिभाननायाः ॥[११] पित्रोर्धातुः कलत्रखसमतसहदान्तस्य धम्मैकधारो दत्तं दानं यदेतत्सकल मतिरसेनायुरा, 17 रोम्बहेतोः । सर्वेषाखममाजा भवभयजलधेः पारसंतारणार्थ श्रीमसम्बो (म्बो)धिकल्पद्रुमविपुलफलप्राप्तये चानुमोद्यम् ॥[१२**] चन्द्रो यावच्चकास्ति स्फुरदुरुकिरणो लो, 18 कदीपञ्च भावान् एषा यावञ्च धात्रो सजलधिवलया द्यौच दत्ताव कामा । यावचैते महान्तो भुवनभरधुरन्धारयन्तो महीधास्तावञ्चन्द्राव दाता धवलयतु दिशाम्म , 19 एडलं कोतिरेषा [१३] यो दानस्यास्य कधित्वतजगदवधेरन्तरायं विद. ध्यात्माक्षाहवासनस्थो जिन पर भगवानन्तरस्थः सदास्ते । वा(बा)लादित्येन राजा प्रदलितरि, 20 पुणा स्थापितष शास्ता पञ्चानन्तर्यकर्तगतिमतिविषमाधीहीनः स यायात् ॥[१४॥*] इत्येवं शोलचन्द्रप्रथितकरणिकखामिदत्तावला संहाजां मूनि कृत्वा श्रुतलव, 21 विभवावयमालोच्य भारं । इद्यामेतामुदार त्वरितमकुरुतामप्रपञ्चा प्रशस्तिं पाछेता किन पंगू शिखरितरुफलावाप्तिमुच्चः करण [...] 1 Metre : Särddūlavikriditam. * Metre: Sagellaci. Motre : Voubtatilaka. -The last akahara of the first pida should be treated a gw **

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