Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika Author(s): Sahajanand Maharaj Publisher: Sahajanand Shastramala View full book textPage 4
________________ M आत्म-कीर्तन अध्यात्मयोगी न्यायतीर्थ सिद्धान्तन्यायसाहित्यशास्त्री शान्तमूर्ति पूज्य श्री मनोहरजी वर्णी “सहजानन्द" महाराज द्वारा रचित हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम । ज्ञाता द्रष्टा मातमराम ॥टेक। अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह रागवितान।। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मै हूँ वह हैं भगवान ॥१॥ मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति सुख जान निधान । किन्तु पाशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान ॥२॥ सुख दुःख दाता कोइ न मान, मोह राग दुःख की खान ।। निजको निज परको पर जान, फिर दुःखका नहिं लेश निदान ॥३॥ जिन, शिव ब्रह्मा राम, विष्णु बुद्ध हरि जिसके नाम । राग त्यागि पहुंचू निज धाम, प्राकुलताका फिर क्या काम ॥४॥ होता स्वयं जगत परिणाम, मै जगका करता क्या काम । दूर हटो परकृत परिणाम, 'सहजानन्द' रहूं अभिराम ॥५॥ 1000. [धर्मप्रेमी बंधुनो ! इस प्रात्मकीर्तनका निम्नांकित अवसरो पर निम्नांकित पद्धतियों में भारतमें अनेक स्थानोंपर पाठ किया जाता है। आप भी इसी प्रकार पाठ कीजिए] १-शास्त्रसभाके अनन्तर या दो शास्त्रोके बीचमे श्रोतावों द्वारा सामूहिक रूपमे । २-जाप, सामायिक, प्रतिक्रमणके अवसरपर। ३-पाठशाला, शिक्षासदन, विद्यालय लगनेके समय छात्रो द्वारा। ४-सूर्योदयसे एक घटा पूर्व परिवारमें एकत्रित बालक, बालिका, महिला तथा पुरुषो द्वारा। ५-किसी भी आपत्तिके समय या अन्य समय शान्तिके अर्थ स्वरुचिके अनुसार किसी अर्थ, चौपाई या पूर्ण छंदका पाठ शान्तिप्रेमी बन्धुओ द्वारा ।Page Navigation
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