Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 12
________________ चतुर्थ संस्करण साहित्य की लोकप्रियता के दो मानक हैं—पाठक की रुचि और समीक्षक की समालोचना। कुछ समय पूर्व अणुव्रत-अनुशास्ता गुरुदेव श्री तुलसी की पुस्तक--- दीये से दीया जले-मृद्रित होकर आई और हाथोंहाथ चली गई। चार महीने में उसके तीन संस्करण समाप्त हो गए। पाठकों की मांग आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हई है। इससे लगता है कि पुस्तक में कुछ ऐसी सामग्री है, जो मन को प्रभावित करने वाली है। तीर्थंकर के प्रबुद्ध और अनुभवी संपादक डॉ० नेमीचन्द जैन ने प्रस्तुत पुस्तक की समीक्षा में लिखा है-'आचार्य तुलसीजी की यह बहुमूल्य कृति उनके परिपक्व दिशाबोधक चिन्तन की सुमेरु कृति है। स्वकथ्य में तथा अन्यत्र उपलब्ध उनके ये वाक्य किसी भी व्यक्ति अथवा समूह के लिए कभी भी, कहीं भी प्रेरणादायी सिद्ध हो सकते हैं।' डॉ० मूलचन्दजी सेठिया ने भी इस पर विस्तृत समीक्षा लिखी। ____ अणुव्रत गुरुदेव का एक सार्वभौम कार्यक्रम है। मुख्य रूप से उसी सन्दर्भ में समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लघु निबन्ध पढ़ने में सुरुचिपूर्ण और नई दृष्टि देने वाले हैं। पाठकों की पसन्द इस सचाई को उजागर कर रही है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ऋषभ-द्वार लाडनूं-३४१३०६ ७ नवंबर १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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