Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 11
________________ नहीं होता। किन्तु जिसका चरित्रवल समाप्त हो जाता है, वह पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है। इस आस्था को प्रज्वलित रखने वाला दीपक आज कहां है? मनुष्य सोचता है कि इस युग में नीति और चरित्र के बल पर जीवन जीना दुष्कर है। उसके विश्वास की जड़ें हिल गई हैं। ऐसे समय में अणुव्रत अनुशास्ता गुरुदेव श्री तुलसी ने विश्वास का दीया जलाने का वज्र संकल्प अभिव्यक्त किया। दीये से दीया जले-उनके संकल्पों के हिमालय से प्रवाहित ऐसी चिन्तनधारा है, जो युग की ऊष्मा से संतप्त मानव-मन को शीतलता प्रदान कर सकती है। दीये से दीया जले-उनके आत्मविश्वास की दीप्ति से उछले हुए ऐसे स्फुलिंग हैं, जो अविश्वास के अंधेरे में भटके हुए लोगों को पथ दिखा सकते हैं। दीये से दीया जले-उनके विचारों की वह सम्पदा है, जो वैचारिक दरिद्रता के युग में मनुष्य को नई सोच की धरती दे सकती है। व्यक्ति-व्यक्ति के मन में विश्वास का दीया जलाने की अभिप्रेरणा से भरा हुआ यह उपक्रम प्रत्येक पाठक के मन को आलोकित करे और उन तक पहुंचा हुआ आलोक आगे-से-आगे फैलता रहे, यही इस कृति के सृजन व सम्पादन की सार्थकता है। -साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ऋषभ-द्वार लाडनू-३४१३०६ २१ जून १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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