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जागरण की दो शक्तिशाली विधियां
जो भी तुम्हारे मन में आता है - जो कुछ भी— उसे स्वयं अभिव्यक्त होने दो, इसमें सहयोग करो । कोई प्रतिरोध नहीं- आवेगों का एक सहज प्रवाह ।
यदि तुम चीखना चाहो तो चीखो। उसके साथ सहयोग करो। एक गहरी चीख, एक परिपूर्ण चीख जिसमें तुम्हारा पूरा अस्तित्व आबद्ध हो जाता है - यह बहुत स्वास्थ्यप्रद है, यह गहनरूप से थेराप्यूटिक है। अनेक बातें, अनेक बीमारियां मात्र इस समग्र चीख के साथ विसर्जित हो जाएंगी। यदि चीख परिपूर्ण है तो तुम्हारा समग्र अस्तित्व उसमें संलग्न हो जाएगा।
ऑक्सीजन, जीव कोशाणुओं में ज्यादा ऊर्जा । तुम्हारे देहं कोशाणु ज्यादा जीवंत हो उठेंगे। यह अधिक ऑक्सीजनेशन देह - विद्युत के निर्माण में सहायक है— या तुम इसे जैविक ऊर्जा कह सकते हो। जब शरीर में अधिक देह - विद्युत है तब तुम भीतर गहराई में उतर सकते हो, स्वयं के पार जा सकते हो। यह ऊर्जा तुम्हारे भीतर कार्य करेगी।
शरीर के अपने विद्युत स्रोत हैं । यदि तुम उन पर अधिक श्वास-प्रश्वास और अधिक ऑक्सीजन से चोट करो तो ये ऊर्जा स्रोत बहने लगते हैं। और यदि तुम सच में ही जीवंत हो उठते हो तब तुम एक शरीर न रहे। तुम ज्यादा जीवंत होते हो तो तुम्हारे भीतर ज्यादा ऊर्जा बहती है उतना ही तुम स्वयं को कम शरीरिक अनुभव करते हो। तुम स्वयं को ज्यादा ऊर्जा और कम पदार्थ की तरह अनुभव करते हो ।
और जब कभी यह घटता है कि तुम ज्यादा जीवंत होते हो, तो उन क्षणों में तुम कम देहाभिमुख होते हो। काम-क्रीड़ा . इतना आकर्षण है, उसका एक कारण यह भी है कि यदि तुम काम-क्रीड़ा में समग्ररूप से सक्रिय हो, गतिमान हो, समग्ररूप से प्राणवान हो तब तुम एक देह नहीं रह जाते – ऊर्जा मात्र हो जाते हो । इस ऊर्जा को अनुभव करना, इसके साथ जीना बहुत जरूरी है यदि तुम शरीर और मन के पार जाना चाहते हो।
मेरे सक्रिय - ध्यान की इस विधि में दूसरा चरण है रेचन का। मैं तुम्हें सचेतन रूप से पागल हो जाने के लिए कहता हूं।
तो दस मिनट तक चीखकर चिल्लाकर रोकर, हंसकर, नाचकर उछल-कूद कर — सब प्रकार की सनकों से अपने आपको अभिव्यक्त करें। कुछ दिनों में आपको अनुभव में आ जाएगा यह क्या होता है।
शुरू-शुरू में यह बलपूर्वक, सप्रयास या अभिनय तक भी हो सकता है। हम इतने नकली हो गए हैं कि हम से कुछ भी प्रामाणिक या वास्तविक होना संभव नहीं है । हम हंसे नहीं हैं, हम रोए नहीं हैं, हम प्रामाणिकता से चीखे भी नहीं हैं। हमारा सब कुछ एक दिखावा, एक मुखौटा मात्र है। इसलिए जब तुम इस विधि का अभ्यास शुरू करते हो - तो पहले यह बलपूर्वक ही होगा। प्रयास की जरूरत पड़ सकती है; अभिनय भी हो सकता है। इसकी चिंता न करें। प्रयोग जारी रखें। शीघ्र ही तुम उन स्रोतों का स्पर्श करोगे,
जहां तुमने बहुत-सी बातें दमन करके रखी हुई हैं। तुम उन स्रोतों से सम्पर्क करोगे, और एक बार वे बाहर निकल जाएं तो तुम निर्भार अनुभव करोगे। एक नया जीवन तुममें आएगा; एक नया जन्म घटित होगा।
यह निर्भर होना आधारभूत है और इसके बिना, आदमी जैसा है, उसे ध्यान नहीं हो सकता। मैं अपवादों की बात नहीं कर रहा हूं। वे असंगत हैं। इस दूसरे चरण के साथ, जब दमित आवेग बाहर फेंक दिए जाते हैं, तुम खाली हो जाते हो। और यही अर्थ होता है खाली होने का : समस्त दमनों से खाली हो जाना। इस खालीपन में कुछ किया जा सकता है। रूपांतरण घटित हो सकता है; ध्यान घटित हो सकता है।
फिर तीसरे चरण में मैं 'हू' के उच्चार का उपयोग करता हूं। अतीत में कई प्रकार की ध्वनियों का उपयोग किया गया है। प्रत्येक ध्वनि का एक विशेष प्रभाव है। उदाहरण के लिए हिंदू लोग 'ओम्' की ध्वनि का उपयोग करते रहे हैं। यह तुम्हारे लिए परिचित हो सकता है। लेकिन मैं 'ओम्' का सुझाव नहीं दूंगा। ओम् हृदय केंद्र पर चोट करता है, लेकिन अब मनुष्य हृदय में केंद्रित नहीं रह गया है। अब ओम् की चोट उस द्वार पर चोट होगी जिस घर के भीतर कोई नहीं रहता।
सूफियों ने 'हू' का उपयोग किया है, और यदि तुम जोर से 'हू' कहो, तो यह गहरे में तुम्हारे काम-केंद्र तक जाता है। इसलिए इस ध्वनि का उपयोग किया गया है तुम्हारे भीतर चोट करने के लिए। जब