Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 299
________________ ओशो के विषय में ओशो के विषय में न द्धत्व की प्रवाहमान धारा में ओशो एक नया प्रारंभ हैं, वे अतीत की ॐ किसी भी धार्मिक परंपरा या श्रृंखला की कड़ी नहीं हैं। ओशो से एक नये युग का शुभारंभ होता है और उनके साथ ही समय दो सुस्पष्ट खंडों में विभाजित होता है: ओशो पूर्व तथा ओशो पश्चात। ___ ओशो के आगमन से एक नये मनुष्य का, एक नये जगत का, एक नये युग का 'सूत्रपात हुआ है, जिसकी आधारशिला अतीत के किसी धर्म में नहीं है, किसी दार्शनिक विचार-पद्धति में नहीं है। ओशो सद्यःस्नात उपलब्ध हुए। संबोधि के संबंध में वे कहते होते। वे आध्यात्मिक जन-जागरण की एक धार्मिकता के प्रथम पुरुष हैं, सर्वथा अनूठे हैं: 'अब मैं किसी भी प्रकार की खोज में नहीं: लहर फैला रहे थे। उनकी वाणी में और उनकी संबुद्ध रहस्यदर्शी हैं। हूं। अस्तित्व ने अपने समस्त द्वार मेरे लिए उपस्थिति में वह जादू था, वह सुगंध थी जो ___ मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में 11 खोल दिये हैं।' उन दिनों वे जबलपुर के एक किसी पार के लोक से आती है। दिसंबर 1931 को जन्मे ओशो का बचपन का कालेज में दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी थे। संबोधि सन 1966 में ओशो ने विश्वविद्यालय नाम रजनीश चन्द्रमोहन था। उन्होंने जीवन के घटित होने के पश्चात भी उन्होंने अपनी शिक्षा के प्राध्यापक पद से त्यागपत्र दे दिया ताकि प्रारंभिक काल में ही एक निर्भीक स्वतंत्र जारी रखी और सन 1957 में सागर अस्तित्व ने जिस परम भगवत्ता का खजाना आत्मा का परिचय दिया। खतरों से खेलना विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी उन पर लुटाया है उसे वे पूरी मानवता के प्रति उन्हें प्रीतिकर था। 100 फीट ऊंचे पुल से कूद में प्रथम (गोल्डमेडलिस्ट) रहकर एम.ए. की बांट सकें और एक नये मनुष्य को जन्म देने कर बरसात में उफनती नदी को तैरकर पार उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात वे जबलपुर की प्रक्रिया में समग्रतः लग सकें। करना उनके लिए साधारण खेल था। युवा विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक ओशो का यह नया मनुष्य 'ज़ोरबा दि ओशो ने अपनी अलौकिक बुद्धि तथा दृढ़ता पद पर कार्य करने लगे। विद्यार्थियों के बीच बुद्धा' एक ऐसा मनुष्य है जो ज़ोरबा की भांति से पंडित-पुरोहितों, मुल्ला-पादरियों, संत- वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से अतिशय भौतिक जीवन का पूरा आनंद मनाना जानता है महात्माओं-जो स्वानुभव के बिना ही भीड़ लोकप्रिय थे। और जो गौतम बुद्ध की भांति मौन होकर के अगुवा बने बैठे थे—की मूढ़ताओं और विश्वविद्यालय के अपने नौ सालों के ध्यान में उतरने में भी सक्षम है-ऐसा मनुष्य पाखंडों का पर्दाफाश किया। अध्यापन-काल के दौरान वे पूरे भारत में जो भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों तरह से 21 मार्च 1953 को इक्कीस वर्ष की भ्रमण भी करते रहे। प्रायः ही 60-70 हजार समृद्ध है। 'ज़ोरबा दि बुद्धा' एक समग्र व आयु में ओशो संबोधि (परम जागरण) को की संख्या में श्रोता उनकी सभाओं में उपस्थित अविभाजित मनुष्य है। इस नये मनुष्य के xvii

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