Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 295
________________ 279 मैंने सदा आपको यह कहते सुना है, "करना छोड़ो। देखो। " हाल ही में मैंने कई बार आपको यह कहते सुना है कि मन हमारे मालिक की अपेक्षा हमारा सेवक होना चाहिए। ऐसा लगता है कि देखने के अतिरिक्त और कुछ भी करने को नहीं है। लेकिन फिर भी प्रश्न उठता है: क्या इस उच्छृंखल को मात्र देखने के अतिरिक्त उसके साथ कुछ और नहीं किया जा सकता ? ओशो से प्रश्नोत्तर साक्षित्व पर्याप्त है बुझा होता है तो चोर घर की ओर आकर्षित होते हैं। अंधकार एक आमंत्रण बन जाता है। जैसा कि गौतम बुद्ध कहा करते थे, यही बात तुम्हारे विचारों, कल्पनाओं, स्वप्नों, चिंताओं और पूरे मन के संबंध में है। स उच्छृंखल सेवक के साथ और कुछ भी करने जैसा नहीं है, सिवाय उसे देखने के। ऊपरी तौर पर तो यह अत्यंत जटिल समस्या का एक अत्यंत सरल समाधान दिखाई पड़ता है। लेकिन यह अस्तित्व के रहस्यों का हिस्सा है। समस्या चाहे बहुत जटिल हो, समाधान अत्यंत सरल हो सकता है। देखना, साक्षी होना, सजग होना इत्यादि मन की पूरी जटिलता को सुलझाने के लिए बड़े छोटे शब्द लगते हैं। वंश, परंपरा, संस्कार और पूर्वाग्रह के लाखों वर्ष मात्र देखने भर से किस तरह मिट जाएंगे? लेकिन वे मिट जाते हैं। जैसा कि गौतम बुद्ध कहते थे, यदि घर में प्रकाश जलता हो तो चोर उस घर के करीब नहीं आते – वे जान जाते हैं कि घर का मालिक जागा है, क्योंकि खिड़कियों से, द्वार से प्रकाश झांक रहा है, तुम देख सकते हो कि प्रकाश जल रहा है। यह घर में घुसने का समय नहीं है। जब प्रकाश यदि साक्षी मौजूद हो, तो साक्षी लगभग प्रकाश की भांति है। ये चोर भागने लगते हैं। और यदि इन चोरों को पता लग जाए कि साक्षी मौजूद नहीं है तो वे अपने भाइयों को, अपने रिश्तेदारों को और सबको बुलाने लगते हैं कि, “आ जाओ।” यह प्रकाश जैसी सीधी घटना है। जिस क्षण तुम प्रकाश भीतर लाते हो, अंधकार मिट जाता है। तुम यह नहीं पूछते कि, “क्या अंधकार को मिटाने के लिए प्रकाश ही पर्याप्त है?" या, "जब हम प्रकाश ला चुके हों, तो क्या अंधकार को मिटाने के लिए कुछ और भी करना पड़ेगा ?” नहीं, बस प्रकाश की उपस्थिति मात्र ही अंधकार की अनुपस्थिति है और प्रकाश की अनुपस्थिति अंधकार की उपस्थिति है।

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