Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 293
________________ ओशो से प्रश्नोत्तर तुमने में अनुभव नहीं का सदा ही क्षण बीच-बीच में बहुत-बहुत दूरी पर जाएंगे-रंग जो तुमने संसार में कभी देखे सकता। अ-मन का यह अर्थ नहीं है कि आते हैं।" यह एक बड़ी उपलब्धि है, नहीं, सुगंधे जो तुमने संसार में कभी मन नष्ट हो गया। अ-मन का इतना ही क्योंकि लोगों को तो एक अंतराल का भी अनुभव नहीं की। फिर तुम मार्ग पर चल अर्थ है कि मन हटा कर अलग रख पता नहीं है। उनके विचारों की सदा ही सकते हो बिना इस भय के कि तुम गलत दिया गया। जिस क्षण भी तुम संसार से धक्का-मुक्की रहती है। विचारों पर भी जा सकते हो। संवाद करना चाहो उसे सक्रिय कर ले विचार, कंधे से कंधा मिलाए। लाइन लगी ये अंतर्भानुभव तुम्हें सदा ठीक मार्ग पर सकते हो, फिर वह तुम्हारा गुलाम हो रहती है-चाहे तुम जागे हो कि सोए हो। रखेंगे। बस इतना स्मरण रखो कि वे जाएगा। अभी तो वह तुम्हारा मालिक है। जिन्हें तुम अपने स्वप्न कहते हो वे चित्रों विकसित हो रहे हैं। इसका अर्थ है कि तुम जब तुम अकेले भी बैठे होते हो तो के रूप में विचारों के अतिरिक्त और कुछ बढ़ रहे हो। अब तुम्हारे पास निर्विचार के वह चलता रहता है: याकेटी-याक, नहीं हैं, क्योंकि अचेतन मन अक्षरों की कुछ क्षण हैं। यह कोई साधारण उपलब्धि याकेटी-याक! और तुम कुछ भी नहीं कर भाषा नहीं जानता। नहीं है, यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि सकते। तुम इतने असहाय हो। . जो तुम अनुभव कर रहे हो वह इस बात __ लोग तो अपने पूरे जीवन में भी कोई ऐसा अ-मन का इतना ही अर्थ है कि मन का बड़ा संकेत है कि तुम सही मार्ग पर क्षण नहीं जान पाते जब कोई विचार न हो। अपने सही स्थान पर आ गया। गुलाम की हो। साधक के सामने सदा ही यह प्रश्न ये अंतराल बढ़ेंगे। जैसे-जैसे तुम तरह वह अच्छा यंत्र है। मालिक की भांति रहता है कि वह ठीक दिशा में चल रहा है अधिक केंद्रित होओगे, अधिक सजग बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है, खतरनाक है। तब वह कि नहीं। कोई सुरक्षा, कोई संरक्षण, कोई होओगे, ये अंतराल बड़े होने लगेंगे। और तुम्हारा पूरा जीवन नष्ट कर देगा। गारंटी नहीं है। सभी आयाम खुले हुए हैं; यदि तुम बिना पीछे मुड़े, बिना भटके मन केवल एक माध्यम है-जब तुम सही का चुनाव तुम कैसे करोगे? चलते चले जाओ तो वह दिन भी दूर नहीं दूसरों से जुड़ना चाहते हो। लेकिन जब तुम ये उपाय हैं और कसौटियां हैं कि है-यदि तुम सीधे चलते रहो, तो वह अकेले होते हो, तो मन की कोई जरूरत व्यक्ति कैसे चुनाव करे। यदि तुम किसी दिन दूर नहीं है जब पहली बार तुम्हें लगेगा नहीं है। तो जब भी तुम उसका उपयोग भी मार्ग पर, किसी भी विधि पर चलो और कि अंतराल इतने बड़े हो गए हैं कि घंटों करना चाहो, कर सकते हो। फिर एक बात वह तुम्हारे लिए आनंद ले आए, अधिक बीत जाते हैं और एक भी विचार नहीं और याद रखोः जब मन घंटों तक शांत संवेदनशीलता और अधिक द्रष्टा-भाव ले उठता। अब तुम्हें अ-मन के बृहत्तर रहता है, तो वह ताजा और युवा हो जाता आए और तुम्हें मंगल का एक भाव दे दे, अनुभव मिलने लगे। है, अधिक सक्रिय, अधिक संवेदनशील तो यही एक कसौटी है कि तुम ठीक मार्ग परम उपलब्धि तब होती है जब तुम और विश्राम करके पुनरुज्जीवित हो जाता पर चल रहे हो। यदि तुम और दुखी, और चौबीस घंटे अ-मन से घिरे रहते हो। है। क्रोधित, और अहंकारी, और लोभी, और इसका यह अर्थ नहीं कि तुम अपने मन का साधारण लोगों के मन लगभग तीन या वासनायुक्त हो जाओ तो ये संकेत हैं कि उपयोग नहीं कर सकते। यह भ्रांति उन चार वर्ष की उम्र के आस-पास सक्रिय तुम गलत मार्ग पर चल रहे हो। लोगों द्वारा फैलाई गई है जो अ-मन के होते हैं और सत्तर-अस्सी वर्ष तक बिना सही मार्ग पर तुम्हारा आनंद रोज-रोज विषय में कुछ भी नहीं जानते। रुके चलते रहते हैं। स्वभावतः वे बहुत अधिकाधिक विकसित होता जाएगा। और अ-मन का यह अर्थ नहीं है कि तुम मन सृजनात्मक नहीं हो सकते। वे बिलकुल सुंदर अनुभूतियों के तुम्हारे अनुभव अपार का उपयोग नहीं कर सकते। इसका इतना थके-टूटे होते हैं, और थकते हैं रूप से अलौकिक व रंगपूर्ण हो ही अर्थ है कि मन तुम्हारा उपयोग नहीं कर कूड़े-कचरे से। संसार में लाखों लोग बिना 277

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