Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 266
________________ ओशो से प्रश्नोत्तर जाता। भेजने-करने के लिए कोई बैठा चारों ओर का संसार रूपांतरित हो जाता भीतर झांको। सीधे ही भीतर देखो। किस हुआ नहीं है कोई भी नहीं है। लेकिन है। तुम एक रूपांतरणकारी शक्ति बन चीज की जरूरत है? सब कुछ परिपूर्ण जहां भी वे जाते हैं, यह उनके होने का ढंग गए। ___ और सुंदर है। मैं एक बादल भी वहां नहीं है: वे अपना स्वर्ग बना लेते हैं। अपना स्वीकार-एक गहन और समग्र देख सकता। बस अपने भीतर स्वर्ग वे अपने साथ, अपने भीतर लेकर स्वीकारभाव ही सारा का सारा धर्म है। झांको-तुम्हारे अंतआकाश में एक बादल चलते हैं। और पापी? -तुम उन्हें स्वर्ग अ चाहता है ब बनना; ब चाहता है स भी नहीं है। सब कुछ प्रकाश से परिपूर्ण में भेज सकते होः वे नरक बना लेंगे। बनना। फिर बनने का रोग पैदा होता है। है। वे और कुछ कर भी नहीं सकते। तुम एक बनने की प्रक्रिया नहीं हो; तुम लेकिन देर-अबेर मन कुछ और होने __ तो एक संत या पापी की परिभाषा क्या एक होना हो। तुम पहले से ही वही हो जो को, कहीं और चलने को, बनने को है? मेरी परिभाषा है : संत वह है जो हर तुम हो सकते हो, जो तुम कभी भी हो कहेगा। मन तुम्हें 'होने' की आज्ञा नहीं चीज को स्वर्ग में बदल लेने की कीमिया सकते हो-तुम पहले से ही वही हो। देता। मन है 'बनना', और तुम्हारी आत्मा का राज जानता है। और पापी वह है जो तुम्हारे बाबत और ज्यादा कुछ भी नहीं है 'होना'। इसलिए बुद्धपुरुष कहे चले चीजों को सुंदर अस्तित्व में रूपांतरित कर किया जा सकता। तुम एक पूर्ण निर्मित जाते हैं, “जब तक तुम सब इच्छाओं को लेने का राज नहीं जानता। बल्कि वह घटना हो।। नहीं त्याग देते, तब तक उपलब्ध नहीं हो चीजों को असुंदर ही करता चला जाता है। इस कहानी को, कि परमात्मा ने संसार सकते!" तुम जो भी हो तुम्हारे चारों ओर वही का सृजन किया, मैं यही अर्थ देता हूं: इच्छा का अर्थ है बनना। इच्छा का अर्थ प्रतिबिंबित होगा। तो कुछ और होने की जब पूर्ण सृजन करता है तो सृष्टि भी है कुछ और होना। इच्छा का अर्थ है अपने चेष्टा मत करो। और न ही किसी और परिपूर्ण होती है। जब परमात्मा सृजन को जैसे हो वैसा स्वीकार न करना, एक स्थान पर होने की चेष्टा करो। यही वह करता है, तो तुम उसमें सुधार कैसे कर पूर्ण 'हां' की दशा में न होना-चाहे कैसे रोग है जिसे मनुष्य कहते हैं: उसे हमेशा सकते हो? जरा इस बात की पूरी मूढ़ता भी परिस्थिति क्यों न हो। कुछ और बनना है, कहीं और होना है; जो पर विचार तो करो; पूरी बात ही मूढ़तापूर्ण जीवन को "हां" कहना ही धार्मिक होना है उसे वह सदा अस्वीकृत करेगा, और जो है। है; जीवन को "न" कहने का अर्थ है नहीं है उसके पीछे दौड़ेगा। यही वह रोग है तुम परमात्मा के किए पर सुधार करने अधार्मिक होना। और जब भी तुम किसी जिसे मनुष्य कहते हैं। की चेष्टा कर रहे हो; तुम सुधार नहीं कर चीज की इच्छा करते हो तो तुम “न” कह सचेत हो जाओ! क्या तुम्हें यह दिखाई सकते। तब बस इतना ही है कि तुम दुखी रहे हो। तुम कह रहे हो कि इससे कुछ पड़ता है? यह तो सीधी-सी देखने की बात हो सकते हो। और व्यर्थ ही पीड़ित हो बेहतर संभव है। है। मैं इसके बारे में कोई सैद्धांतिक सकते हो। और ऐसी बीमारियां तुम्हें वृक्ष खुश हैं, पक्षी खुश हैं और बादल व्याख्या नहीं कर रहा हूं; मैं कोई दार्शनिक झेलनी पड़ेंगी जो तुम्हारी कल्पना के खुश हैं क्योंकि उनमें कुछ बनने की नहीं हूं। मैं तो एक स्पष्ट और नग्न सत्य अतिरिक्त और कहीं नहीं हैं। परमात्मा के कामना नहीं है। वे जो हैं, सो हैं। की ओर संकेत कर रहा हूं कि तुम चाहे सृजन करने का अर्थ है: पूर्णता से पूर्णता गुलाब की झाड़ी कमल होने की चेष्टा जहां भी हो, यदि इस क्षण में जी सको और आती है। नहीं कर रही है। नहीं, गुलाब की झाड़ी भविष्य को, लक्ष्यों को, कुछ और बनने तुम परिपूर्ण हो! और कुछ भी नहीं गुलाब की झाड़ी होने में ही बिलकुल प्रसन्न के खयाल को भूल सको तो तत्क्षण तुम्हारे चाहिए। ठीक अभी, इसी क्षण अपने है। गुलाब की झाड़ी को तुम फुसला नहीं 250

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