Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 275
________________ ओशो से प्रश्नोत्तर जब प्रेम और ऊपर उठता है, या और शिखर की झलक मिल गई हो, तो यह पहलू हैं। गहरा जाता है जो कि एक ही बात प्रश्न असंगत हो जाता है। और स्मरण रखोः यदि तुम्हारे होश में है तो उसमें कुछ-कुछ अध्यात्म आने तुम पूछते होः "क्या प्रेम होश से प्रेम नहीं है तो वह अभी अशुद्ध है; अभी लगता है। वह आत्मविज्ञान बन जाता है। उच्चतर मूल्य है?" तक उसने सौ प्रतिशत शुद्धता नहीं जानी। केवल बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट और उन कुछ ऊपर और कुछ नीचे नहीं है। वह अभी तक वास्तव में होश नहीं है; जैसे अन्य लोग ही प्रेम के इस गुण से वास्तव में, मूल्य दो हैं ही नहीं। घाटी से अभी जरूर उसमें बेहोशी मिली हुई होगी। परिचित हैं। दो मार्ग शिखर की ओर जाते हैं। एक मार्ग वह शुद्ध प्रकाश नहीं है; जरूर तुम्हारे प्रेम पूरे मार्ग पर फैला हुआ है, और होश का, ध्यान का है: झेन का मार्ग। भीतर अभी अंधकार काम करता होगा, यही बात दूसरे मूल्यों के विषय में है। जब दूसरा मार्ग है-प्रेम का, भक्तों का, सक्रिय होगा, तुम्हें प्रभावित करता होगा, प्रेम सौ प्रतिशत शुद्ध हो जाता है तो तुम सूफियों का। जब तुम यात्रा शुरू करते हो नियंत्रित करता होगा। यदि तुम्हारा प्रेम प्रेम और होश में कोई भेद नहीं कर सकते; तो दोनों मार्ग भिन्न होते हैं; तुम्हें चुनाव होश से रिक्त है, तो वह अभी प्रेम नहीं है। फिर वे दो नहीं रहते। तब तो तुम प्रेम और करना होता है। जो भी मार्ग तुम चुनो, वह वह जरूर कुछ निम्न घटना होगी, कुछ जो परमात्मा के बीच भी भेद नहीं कर सकते; उसी शिखर पर ले जाएगा। और जब तुम प्रार्थना की अपेक्षा वासना के अधिक वे अब दो नहीं रहते। इसीलिए जीसस शिखर के करीब आओगे तो हैरान करीब है। का कथन है कि परमात्मा प्रेम है। वे होओगेः दूसरे मार्ग के यात्री भी तुम्हारे तो इसे एक कसौटी बन जाने दोः यदि दोनों को समानार्थी बना देते हैं। इसमें करीब आ रहे हैं। धीरे-धीरे मार्ग एक दूसरे तुम होश के मार्ग पर चलते हो, तो प्रेम विराट अंतर्दृष्टि है। में समाहित होने लगते हैं। जब तक तुम को कसौटी बन जाने दो। जब तुम्हारा होश परिधि पर तो सब कुछ एक-दूसरे से परम बिंदु पर पहुंचते हो वे एक हो चुकते अचानक प्रेम में खिल उठे, तो भली-भांति भिन्न लगता है, परिधि पर अस्तित्व अनेक हैं। जानना कि होश घटा, समाधि उपलब्ध है। जब तुम केंद्र के निकट आते हो, . जो व्यक्ति होश के मार्ग पर चलता है हुई। यदि तुम प्रेम के मार्ग पर चलते अनेकता पिघलने लगती है, तिरोहित होने वह प्रेम को अपने होश के परिणाम की हो, तो होश को कसौटी का काम करने लगती है, और एकता का प्रादुर्भाव होने तरह, उप-उत्पत्ति की तरह, छाया की तरह दो। जब अचानक, शून्य में से, तुम्हारे लगता है। केंद्र पर सब कुछ एक है। तो पाता है। और जो व्यक्ति प्रेम के मार्ग पर प्रेम के केंद्र पर से होश की एक तुम्हारा प्रश्न तभी ठीक होगा यदि तुम प्रेम चलता है वह होश को प्रेम के परिणाम की ज्योति उठने लगती है, तो भली-भांति और होश के उच्चतम गुण को न जानते तरह, उप-उत्पत्ति की तरह, छाया की तरह जानो...आह्लादित होओ! तुम घर आ होओ। यदि तुम्हें एवरेस्ट की, उच्चतम पाता है। वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहुंचे। 6 259

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