Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 281
________________ 265 ओशो से प्रश्नोत्तर संक्रमणकालीन अनिश्चितता और असुरक्षा - जितना ज्यादा मैं स्वयं को देखता हूं, उतना ज्यादा मैं अपने अहंकार झूठेपन को अनुभव करता हूं। मैं स्वयं को ही अजनबी लगने लगा हूं, अब नहीं जानता कि क्या झूठ है। यह बात मुझे एक बेचैन अनुभूति के बीच छोड़ देती है कि जीवन-मार्ग की कोई रूपरेखाएं नहीं हैं, जो कि मुझे लगता था पहले मेरे पास थीं। सा होता है, ऐसा होगा ही । और ध्यान रहे कि तुम्हें खुश होना चाहिए कि ऐसा हुआ। यह अच्छा लक्षण है। जब कोई चलना शुरू करता है अंतर्यात्रा पर तो हर चीज सीधी-साफ, बद्धमूल जान पड़ती है; क्योंकि अहंकार नियंत्रण में होता है और अहंकार के पास सारी रूपरेखाएँ होती हैं, अहंकार के पास सारे नक्शे होते हैं, अहंकार मालिक होता है। जब तुम कुछ और आगे बढ़ते हो इस यात्रा में, तो अहंकार वाष्पित होने लगता है; और और झूठा जान पड़ने लगता है और अधिक धोखा मालूम पड़ने लगता है – एक भ्रम । तुम स्वप्न में से जागने लगते हो, तब सारे नक्शे ढांचे खो जाते हैं। अब वह पुराना मालिक कोई मालिक नहीं रहता, और नया मालिक अभी तक आया नहीं होता। एक उलझन होती है, एक अराजकता। यह एक अच्छा लक्षण होता है। आधी यात्रा पूरी हुई, लेकिन एक बेचैन अनुभूति तो आ बनेगी, एक घबड़ाहट, क्योंकि तुम खोया हुआ अनुभव करते हो— स्वयं के प्रति अजनबी, न जानते हुए कि तुम कौन हो। इससे पहले, तुम जानते थे कि तुम कौन हो तुम्हारा नाम, तुम्हारा रूप, तुम्हारा पता, तुम्हारा बैंक खाता- हर चीज निश्चित थी, इस तरह तुम थे। । तुम्हारा तादात्म्य था अहंकार के साथ। अब अहंकार विलीन हो रहा है, पुराना घर गिर रहा है और तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो, कि तुम कहां हो। हर चीज अंधेरे में घिरी होती है, धुंधली होती है और पुरानी सुनिश्चितता खो जाती है। यह अच्छा है क्योंकि पुरानी निश्चितता

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