Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 246
________________ ध्यान में बाधाएं बिलकुल मुरदा होता है क्योंकि भाषा और सर्वश्रेष्ठ है-बहुत जटिल है, बहुत उन चालों को देखो जो मन खेलता चला शब्द के अतिरिक्त वह और कुछ भी नहीं शक्तिशाली है, और जिसमें बड़ी जाता है, सपने जो वह बुनता होता। सात्र ने अपनी आत्मकथा लिखी है। संभावनाएं हैं। उसे देखो! उसका आनंद है-कल्पना, स्मृति; हजारों प्रक्षेपण जो उसका नाम उसने दिया है: “वर्ड्स", लो! और किसी शत्रु की भांति मत देखो, मन निर्मित करता है-देखो-अलग से, शब्द। क्योंकि मन को यदि तुम शत्रु की भांति दूर खड़े होकर, बिना उसमें सम्मिलित ___ ध्यान का अर्थ है: जीना, समग्रता से देखो, तो नहीं देख सकोगे। तुम पहले ही हुए; और धीरे-धीरे तुम्हें लगने जीना, और समग्रता से तुम तभी जी सकते पूर्वाग्रह से भर गए; तुम पहले से ही उसके लगेगा...। हो जब शांत होओ। शांत होने से मेरा अर्थ खिलाफ हो गए। तुमने पहले से ही निर्णय जैसे-जैसे तुम्हारा साक्षीभाव गहराता बेहोश होना नहीं है। तुम शांत और बेहोश ले लिया कि मन में कुछ गड़बड़ है, तुम्हारा होश गहरा होता है, तो दूरी हो सकते हो लेकिन वह शांति जीवंत नहीं है-तुमने पहले ही निष्कर्ष निकाल बनने लगती है, अंतराल आने लगते हैं। होगी-और तुम फिर से चूक जाओगे। लिया। और जब भी तुम किसी की ओर एक विचार गया, दूसरा अभी आया नहीं; शत्रु की तरह देखते हो तो बहुत गहरे नहीं एक अंतराल है, एक बादल गुजर गया, क्या करना है? प्रश्न संगत है। देखते। फिर तुम कभी आंखों में नहीं दूसरा आ रहा है; बीच में अंतराल है। ।। देखते रहो-रोकने की कोशिश झांकते, तुम बचते हो। उन अंतरालों में पहली बार तुम्हें मत करो। मन के विरुद्ध कुछ भी करने की मन को देखने का अर्थ है: उसकी ओर अ-मन की झलकें मिलेंगी, अ-मन का जरूरत नहीं है। पहली बात, यह काम गहन प्रेम से, गहन सम्मान से, श्रद्धा से स्वाद मिलेगा। इसे झेन का स्वाद कह लो, करेगा कौन? यह तो मन ही मन के साथ देखो-वह परमात्मा का उपहार है तुम्हें! या ताओ का स्वाद कह लो, या योग का संघर्ष करेगा। तुम अपने मन को दो खंडों स्वयं मन में तो कुछ भी गड़बड़ नहीं है। स्वाद कह लो। उन छोटे-छोटे अंतरालों में में बांट लोगेः एक तो वह जो धाक जमाने स्वयं विचार में कुछ गलत नहीं है। अन्य आकाश अचानक स्पष्ट हो जाता है और की, ऊपर चढ़ने की चेष्टा कर रहा है, प्रक्रियाओं की तरह यह भी एक सुंदर सूर्य चमकने लगता है। संसार अचानक अपने ही दूसरे खंड को मारने का प्रयास प्रक्रिया है। आकाश में विचरते हुए बादल चमत्कार से भर उठता है क्योंकि सभी कर रहा है जो कि अर्थहीन है, यह एक सुंदर होते हैं तो अंतआकाश में विचरते अवरोध छुट गए। तुम्हारी आंखों पर परदा मूढ़तापूर्ण खेल है। यह तुम्हें विक्षिप्त कर हुए विचार क्यों नहीं? वृक्षों पर उगते हुए न रहा। तुम स्पष्ट देखते हो, आर-पार देगा। मन को या सोच-विचार को रोकने फूल सुंदर होते हैं तो तुम्हारे प्राणों में देखते हो, पूरा अस्तित्व पारदर्शी हो उठता की चेष्टा मत करो-उसे बस देखो, उसे खिलते हुए विचार क्यों नहीं? सागर की है। होने दो। उसे पूरी स्वतंत्रता दो। जितनी तेज ओर दौड़ती हुई नदी सुंदर होती है तो शुरू में तो ये क्षण विरले ही होंगे, वह दौड़ना चाहे उसे दौड़ने दो। तुम किसी कहीं अज्ञात नियति की ओर दौड़ती यह बीच-बीच में कभी-कभार आ जाएंगे। भी तरह उसे नियंत्रित करने की कोशिश विचारों की धारा क्यों नहीं? क्या यह सुंदर लेकिन वे तुम्हें इसकी झलक दे देंगे कि मत करो। तुम तो बस एक साक्षी हो नहीं है ? समाधि क्या है। मौन के छोटे-छोटे कुंड जाओ। यह सुंदर है! गहन श्रद्धा से भरकर देखो। योद्धा मत आएंगे और विलीन हो जाएंगे। लेकिन मन सुंदरतम यंत्रों में से एक है। विज्ञान बनो, प्रेमी बनो। मन के सूक्ष्म संवेगों को अब तुम जानते हो कि तुम ठीक रास्ते पर अभी भी मन के समानांतर कुछ बना पाने देखो, उसके अकस्मात और सुंदर हो-तुम फिर से देखने लगते हो। में सक्षम नहीं हुआ है। मन अभी भी परिवर्तनों को, उसकी छलांगों को देखो जब एक विचार गुजरता है, तो तुम 230

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