Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 249
________________ ध्यान में बाधाएं बुद्धपुरुष एकाग्रता वाले व्यक्ति नहीं परमात्मा को कभी जान न पाएगा। विज्ञान नहीं—विश्राम है; व्यक्ति बस स्वयं में हैं; वे होश वाले व्यक्ति हैं। वे अपनी की मूल प्रक्रिया है एकाग्रता और इसी विश्राम करता है। जितने तुम विश्रामपूर्ण चेतना को संकीर्ण बनाने का प्रयास नहीं विधि के कारण विज्ञान कभी भी परमात्मा होते हो उतने ही तुम अपने को खुला हुआ करते रहे हैं, इसके विपरीत वे सभी को नहीं जान पाएगा। और ग्रहणशील पाते हो-उतनी ही कम बाधाओं को गिरा देने का प्रयास करते रहे फिर क्या किया जाए? किसी मंत्र का जड़ता तुममें होती है। तुम बहुत तरल हो हैं ताकि वे अस्तित्व के प्रति परिपूर्ण रूप जप या ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन आदि जाते हो और अचानक अस्तित्व तुममें से खुले हो सकें। कोई सहायता न देंगे। भावातीत ध्यान प्रवेश करने लगता है। अब तुम पत्थर की देखो, अस्तित्व में सब कुछ एक साथ (ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन) अमेरिका में बहुत तरह ठोस न रहे सब ओर से तुम एक उपस्थित है। मैं यहां बोल रहा हूं साथ ही महत्वपूर्ण बन गया है-वस्तुगत पद्धति खुलापन हो गए हो। साथ ट्रैफिक की आवाज भी गूंज रही है। होने के कारण-वैज्ञानिक बुद्धि को जंचने विश्राम का अर्थ है : स्वयं को एक ऐसी ट्रेन की आवाज, पक्षियों के गीत, वृक्षों से के कारण। यही एक प्रक्रिया है जिस पर अवस्था में उतरने देना जहां तुम कुछ भी गुजरती हुई हवा-इस क्षण सारा अस्तित्व वैज्ञानिक शोध की जा सकती है। वह नहीं कर रहे हो क्योंकि यदि तुम कुछ कर घुल-मिल रहा है। मेरा तुमसे कुछ कहना, ध्यान नहीं है; वह पूर्णतः एकाग्रता है, इसी रहे हो तो तनाव जारी रहेगा। यह कुछ न तुम्हारा मुझे सुनना-और लाखों घटनाओं कारण वह वैज्ञानिक चित्त के लिए सुबोध करने की एक दशा है; तुम बस विश्रामपूर्ण का चारों ओर होना-यह सब कितना है। विश्वविद्यालयों में, वैज्ञानिक होते हो और तुम विश्राम के अनुभव का ऐश्वर्यशाली है! प्रयोगशालाओं में, मनोवैज्ञानिक शोधों में आनंद लेते हो। एकाग्रता तुम्हें एक स्थान में आबद्ध कर टी एम के बारे में अनेक अनुसंधान कार्य स्वयं में विश्रामपूर्ण हो जाओ; आंखें देती है लेकिन एक बहुत बड़ी कीमत परः हो रहे हैं, क्योंकि टी एम ध्यान नहीं है। . बंद कर लो और चारों ओर जो हो रहा है जीवन का निन्यानबे प्रतिशत हिस्सा यह एकाग्रता है; यह एकाग्रता की एक उसकी आवाजें सुनते रहो। किसी भी बात छोड़कर। यदि तुम गणित का एक सवाल विधि है। टी एम वैज्ञानिक एकाग्रता की को विक्षेप की तरह मत देखो। जिस क्षण हल कर रहे हो तो पक्षियों की आवाजों को श्रेणी में ही आता है। उन दोनों के बीच तुम किसी बात को विक्षेप मानते हो, तुम सुनना एक बाधा होगी, एक विक्षेप होगा। एक सेतु है। लेकिन ध्यान से इसका परमात्मा का इनकार कर रहे हो। आसपास खेलते हुए बच्चे, सड़क पर कोई संबंध नहीं है। इस क्षण में परमात्मा एक पक्षी की तरह भौंकते हुए कुत्ते-वे सब विक्षेपजनक ध्यान इतना विशाल है, अनंत है कि तुम्हारे पास आया है उसका इनकार मत उस पर वैज्ञानिक शोध संभव नहीं है। जब करो। उसने एक पक्षी की तरह तुम्हारे द्वार एकाग्रता की साधना के कारण ही लोगों __ व्यक्ति स्वयं करुणा का सागर बन जाता है पर दस्तक दी है। दूसरे क्षण वह एक ने जीवन से पलायन किया–हिमालय तभी यह पता चलता है कि वह ध्यान को भौंकते हुए कुत्ते की तरह आया है, या एक जाने के लिए, किसी गुफा में जाने के उपलब्ध हुआ है या नहीं। अल्फा तरंग की रोते और चीखते हुए बच्चे की तरह आया लिए, एकांत में रहने के लिए-ताकि वे उत्पत्ति ज्यादा सहायक न होगी क्योंकि वे है, या एक हंसते हुए पागल आदमी की परमात्मा पर चित्त को एकाग्र कर सकें। मन के ही अंग हैं और ध्यान मन की घटना तरह आया है। इनकार मत करो; निषेध लेकिन परमात्मा कोई विषयवस्तु नहीं है; नहीं है; ध्यान मन के पार का रहस्य है। मत करो स्वीकार करो, क्योंकि यदि परमात्मा है यह समग्र अस्तित्व, यह क्षण; इसलिए मैं तुम्हें कुछ मूलभूत बातें तुमने इनकार किया तो तुम तनावपूर्ण हो परमात्मा है समष्टि। इस कारण ही विज्ञान कहता हूं। एकः ध्यान एकाग्रता जाओगे। सभी अस्वीकार तनाव निर्मित होंगे। 233

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