Book Title: Dhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 229
________________ प्रेम में ऊपर उठना अकेला प्रेम तो अंधा है; ध्यान उसे साथ-साथ लक्ष्य में प्रवेश कर सकते हैं। कुछ कहती है, तुम कुछ और समझते हो। आंखें देता है। ध्यान उसे समझ देता है। क्योंकि लक्ष्य तुमसे बाहर नहीं है; वह मैंने ऐसे दंपत्ति देखे हैं जो तीस-चालीस और एक बार तुम्हारा प्रेम ध्यान और प्रेम तो झंझावात का केंद्र है, वह तो तुम्हारी वर्ष तक साथ रहे हैं; फिर भी वे उतने ही दोनों ही बन जाए, तो तुम सहयात्री बन अंतस सत्ता का अंतर्तम केंद्र है। लेकिन अपरिपक्व नजर आते हैं जितने अपने जाते हो। फिर यह पति और पत्नी के बीच तुम उसे तभी खोज सकते हो जब तुम पहले दिन लगते थे। अभी भी वही का साधारण संबंध नहीं रहता। फिर यह समग्र होओ, और दूसरे के बिना तुम समग्र शिकायत है : “मैं जो कह रहा हूं यह प्रेम जीवन के रहस्यों की खोज पर जाते नहीं हो सकते। स्त्री और पुरुष एक ही समझती ही नहीं।" चालीस साल साथ रह मार्ग पर एक मैत्रीभाव बन जाता है। समग्रता के दो हिस्से हैं। कर भी तुम कोई उपाय नहीं खोज पाए कि अकेले पुरुष को या अकेली स्त्री को तो लड़ने में समय व्यर्थ करने की तुम्हारी पत्नी वही समझ सके जो तुम कह यात्रा बड़ी थकाने वाली और बड़ी लंबी अपेक्षा एक-दूसरे को समझने का प्रयास रहे हो, ताकि तुम बिलकुल वही समझ लगेगी, जैसा कि अतीत में होता था। इस करो। अपने को दूसरे के स्थान पर रखकर सको जो वह कह रही है। सतत संघर्ष को देखते हुए, सभी धर्मों ने समझने की चेष्टा करो। इस तरह से देखने मैं सोचता हूं कि ध्यान के सिवाय कोई निर्णय लिया कि जो सत्य की खोज में की चेष्टा करो जैसे एक पुरुष देखता है, और संभावना नहीं है कि यह घट सके, निकलना चाहते हैं उन्हें दूसरे का त्याग कर जैसे स्त्री देखती है। और चार आंखें दो क्योंकि ध्यान तुम्हें मौन की, होश की, देना चाहिए-भिक्षुओं को ब्रह्मचारी होना आंखों से सदा बेहतर होती हैं तुम्हें पूरा श्रवण की गुणवत्ता देता है, स्वयं को दूसरे चाहिए, भिक्षुणिओं को ब्रह्मचारिणी होना दृश्य देखने को मिलता है। तुम्हें चारों की परिस्थिति में रखने की क्षमता देता है। चाहिए। लेकिन पांच हजार वर्षों के दिशाएं उपलब्ध हो जाती हैं। मेरे साथ यह संभव है: मेरा तुम्हारे इतिहास में कितने भिक्षु और कितनी लेकिन एक बात स्मरण रखने की है: जीवन की छोटी-छोटी बातों से कुछ भिक्षुणियां आत्मज्ञान को उपलब्ध हुए? कि ध्यान के बिना प्रेम असफल होगा ही; लेना-देना नहीं है। यहां तुम मूलतः सुनने तुम मुझे दस उंगलियों पर गिनने लायक उसके सफल होने की कोई संभावना नहीं और समझने के लिए हो। यहां तुम नाम भी नहीं बता सकते। और सभी धर्मों है। तुम पाखंड कर सकते हो और दूसरों आध्यात्मिक रूप से विकसित होने के के लाखों भिक्षु हुए-बौद्ध, हिंदू ईसाई, को धोखा दे सकते हो, लेकिन स्वयं को लिए हो। स्वभावतः संघर्ष का कोई प्रश्न मुसलमान। क्या हुआ? धोखा नहीं दे सकते। गहरे में तुम जानते हो नहीं है, और लयबद्धता बिना किसी प्रयास ___ मार्ग इतना लंबा नहीं है। लक्ष्य इतनी कि प्रेम ने जो भी वायदे किए थे वे पूरे नहीं के उठती है। दूर नहीं है। लेकिन तुम अपने पड़ोसी के हुए। तुम मुझे समग्रता से प्रेम कर सकते हो. घर भी जाना चाहो तो तुम्हें अपने दोनों पैरों ध्यान के साथ ही प्रेम नए रंग, नया क्योंकि मेरे साथ तुम्हारा संबंध ध्यान का की जरूरत होगी। बस एक पैर पर संगीत, नए गीत, नए नृत्य लेना शुरू है। किसी और पुरुष के साथ या किसी उछल-उछल कर तुम कितनी दूर तक जा करता है क्योंकि ध्यान तुम्हें विपरीत और स्त्री के साथ, यदि तुम लयबद्धता में सकते हो? ध्रुवों को समझने की अंतर्दृष्टि देता है, और जीना चाहो तो तुम्हें वही वातावरण और __ मैं एक बिलकुल नई दृष्टि दे रहा हूं, कि उस समझ में ही संघर्ष समाप्त हो जाता है। वही जलवायु पैदा करनी होगी जो तुम यहां गहन मैत्री में, एक प्रेमपूर्ण और ध्यानपूर्ण संसार में सारा संघर्ष ही गलतफहमी के ले आए हो। संबंध में, जीवंत समग्रताओं की भांति कारण होता है। तुम कुछ कहते हो, तुम्हारी चीजें असंभव नहीं हैं, लेकिन हमने स्त्री और पुरुष जिस क्षण भी चाहें, पत्नी कुछ और समझती है। तुम्हारी पत्नी ठीक-ठीक औषधि का इस्तेमाल ही नहीं 213

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