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प्रधान सम्पादकीय
जैनधर्म में ध्यानको सर्वोच्च महत्त्व दिया गया है, जो कि सिद्धान्त और अभ्यास दोनों में ही आध्यात्मिकतावादी है। संस्कृत और प्राकृतमें अनेक छोटे-बड़े ग्रन्थ इस विषयपर अति प्राचीन कालसे रचे गये हैं।
यहाँ संस्कृत में १०० श्लोकोंका एक छोटा-सा स्तोत्र प्रस्तुत है, जिसे 'ध्यानस्तव' कहा गया है, जब कि इसे 'ध्यानशतक' भी कहा जा सकता था। इसमें ध्यानको चर्चा है । सम्पादककी भूमिकामें 'काव्यको रूपरेखा' शीर्षकके अन्तर्गत विषयसूची पृष्ठ ९-१० पर दी हुई है। रचनाकार भास्करनन्दि वही हैं, जिन्होंने 'तत्त्वार्थसूत्र' पर टीका भी लिखी है।
कु. सुजुको ओहिराने अंगरेजी अनुवाद और भूमिकाके साथ इस ग्रन्थका सम्पादन किया है। उन्होंने ग्रन्थके विषयोंपर पर्याप्त आलोचनात्मक प्रकाश डाला है, और साथ ही ग्रन्थकारकी परम्परा और कालपर भी प्रकाश डाला है। कु. ओहिरा जापानी महिला हैं। वे अंगरेजी साहित्यमें बी. ए. ( त्सुदा कालेज, टोकियो ) और लायब्ररी साइंस में एम. एल. एस. ( वाशिंगटन विश्वविद्यालय, सीटिल) हैं, और उन्होंने १९६४-६५ तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें अध्ययन किया है। बादमें वे अमेरिकामें 'इलीनोइस विश्वविद्यालय लायब्रेरी' में काम करती रहीं। वे संस्कृतकी प्रबुद्ध विद्यार्थी हैं, और पहले कुछ दिनों तक 'तत्त्वार्थसूत्र' पर भास्करनन्दिको संस्कृत टीकाके अँगरेजी अनुवादपर व्यस्त रही थीं। जैनधर्म में उनका अच्छा दखल है । इन दिनों ये भारतमें भास्करनन्दिकी टीकापर अपना काम अग्रसर रखनेके लिए मैसूर में मैसूर विश्वविद्यालयके जैनशास्त्र और प्राकृत विभागमें हैं । कु. ओहिराने 'ध्यानस्तव' पर अपना
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