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है । इस दृष्टिसे, यह मानना शक्य नहीं है कि उपरोक्त प्रक्रियाको पलटा जा सकता है । और अगर हेमचन्द्रने शुभचन्द्र के धर्म्यध्यानके वर्गीकरणकी नकल की होती, जो कि बड़े प्रत्यक्ष रूपसे आगमोंके विरोधके बिना अपेक्षा सबसे ज्यादा सुगम रूप है, उन्होंने इसे मान लिया होता, ओर इसका वर्गीकरण के दो प्रकारों में बँट जाना स्वीकार न किया होता । तो भी, केवल उपरोक्त आधारपर ही यह अनुमान करना हानिकारक हो सकता है कि हेमचन्द्र शुभचन्द्र द्वारा अनुवर्ती हुए, क्योंकि यह भी देखा जा सकता है कि हेमचन्द्रका रुख ज्यादा संगत है, और उनका प्रस्तुती - करण ज्यादा संक्षिप्त है, इसलिए वे शुभचन्द्र से परवर्ती हुए थे । हेमचन्द्र और शुभचन्द्रका अन्योन्याश्रित कालक्रम निश्चित करनेके लिए हमें अभी भविष्य के उन अध्ययनोंकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जो कि जैन-चिन्तनकी दिशामें दो ग्रन्थकारोंके ग्रन्थोंकी घनिष्ठ संकल्पनात्मक तुलनापर आधारित हो ।
यह विश्लेषण, जिसका सम्बन्ध ध्यानके अन-आगमिक वर्गीकरणके वर्तन से है, हमारे ग्रन्थकारका समयनिर्णय करने में खुद ही मदद करता है । अमितगति (१००० ई.) से परवर्ती और हेमचन्द्र ( १०८८-११७२ ई.) से पूर्ववर्ती थे । फिर भी हम शुभचन्द्र के समय के बारेमें निश्चित नहीं हैं ( विद्वान् ९वींसे १३वीं शताब्दी तकं अलग-अलग अपनी दौड़ लगाते हुए इस विषय में विवाद करते हैं), इसलिए उन्हें फिल्हाल विचारके दायरेसे एक तरफ रखते हुए, मैं अपने निर्णयके आधार के लिए हेमचन्द्र के ज्ञात समयको लेना चाहूँगी । 'ध्यानस्तव' और 'योगशास्त्र' के बीच समयका बड़ा प्रत्यक्ष अन्तर है, और उन दोनों के बीच एक निश्चित समयावधिको स्वीकार किये जाना चाहिए। डॉ. भार्गव अपनी 'जैन एथिक्स' ( पृष्ठ २४४ ) में कहते हैं, "उन्होंने अपना योगशास्त्र लगभग ११६० ई. में समाप्त किया ।" इसलिए १२वीं शताब्दी के आरम्भको भास्करनन्दिकी तिथिकी निचली सीमा स्वीकार करना तर्कसंगत हो सकता है । इस
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