Book Title: Dhyan ka Vigyan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ध्यान को जीने का अर्थ यह कतई नहीं है कि आप समाज में नहीं जाएँगे, समाज की गतिविधियों में शरीक नहीं होंगे अथवा व्यवसाय या उत्पादन नहीं करेंगे। ध्यान हम इसलिए करते हैं ताकि हम उत्पादन भी ध्यानपूर्वक कर सकें। ध्यानी व्यक्ति उन लोगों के हितों और जीवन-मूल्यों का ध्यान अवश्य रखेगा जो उसकी उत्पादकता का उपयोग करेंगे। किसी भी कार्य को करते समय सूक्ष्म हिंसा तो अवश्य होगी, लेकिन ध्यानी व्यक्ति के हर कार्य में अहिंसा और निष्ठा का आचरण होगा। तुम छोटे-से-छोटे कार्य को भी इतने उत्साह और ध्यान-पूर्वक सम्पादित करो कि तुम्हारा वह कार्य भी ईश्वर की प्रार्थना का पुष्प बन जाये। - श्री चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 130