Book Title: Dhyan ka Vigyan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 10
________________ निजता की खोज मनुष्य का अंतर्जगत चेतना का वह धरातल है, जिससे उसका जीवन और जगत संचालित और प्रकाशित होता है। जो अंतर्जगत का स्वामी है, उसका संसार उतना ही सुकोमल, निस्पृह और आनंद-मग्न होता है, जितना किसी मानसरोवर में खिले हुए कमल के फूल का। अंतर्जगत चेतना का घर है। वह चित्-शक्ति का प्रवाह है। मनुष्य को चैतन्य, जीवंत और ऊर्जस्वित बनाये रखने का आधार है। जिसके हाथ में, जिसकी आँख में अंतर्जगत की संपदा है, वह संसार का सब से अनूठा, सबसे समृद्ध और सुखशांति का स्वामी है। __ अंतर्जगत का अपना रस है। उसका अपना स्वाद है, उसका अपना आनंद है। सूरज का प्रकाश बड़ा अर्थ रखता है, लेकिन अंतर्जगत का अपना प्रकाश है। गुलाब के फूलों की महक बेशकीमती है, किंतु अंतर्जगत की निजता की खोज / १ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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