Book Title: Dhyan ka Vigyan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 64
________________ को, उज्जड़ता को उखाड़ फेंके; अपने सोये हुए आत्मविश्वास को जगाए, अन्तर्मन को नपुंसक न होने दे; वह हर समय आत्मविश्वास से ओतप्रोत हो। वह इस संकल्प का स्वामी हो कि मैं अपने साधारण विचारों का त्याग करता हूँ और असाधारण विचारों का स्वामी बनता हूँ, मुझे यह जीवन परमात्मा से सौगात-स्वरूप प्राप्त हुआ है। मैं इस सौगात के लिए कृतज्ञ रहूँगा और स्वयं की उच्च शक्तियों का उपयोग करते हुए संसार के लिए यादगार जीवन जीकर जाऊँगा। हमारे अन्तर्मन में होने वाला यह दृढ़-संकल्प और आत्मविश्वास निश्चय ही जीवन को रोशनी से भरेगा, हमारा अन्तर्मन रोशनी का धाम होगा, हम विकास की ऊँची मीनारों को छू सकेंगे। रूपांतरण ही जीवन की वास्तविक दीक्षा है। व्यवहार है तो व्यवहार, वाणी है तो वाणी, चिंतन है तो चिंतन, सम्यक-दिशा की ओर उनका अग्रगामी होना ही रूपान्तरण है। मिट्टी को अगर बीज और खाद मिले तो वह फूलों को ईजाद कर सकती है। मिट्टी को अगर किसी माईकल एंजेलो के हाथ लगे तो वह मिट्टी में से मूर्ति के सौन्दर्य को स्थापित कर सकती है। किसी महावीर और बुद्ध को साधना के स्पन्दन मिल जायें तो वह उनके जीवन का सिंहासन हो सकती है। जब मिट्टी किसी मूर्ति और दीपक को जन्म दे सकती है, बादल इन्द्रधनुष के वैभव को साकार कर सकता है तो फिर मनुष्य में ही नपुंसकता क्यों। हम अपने अन्तरमन में समायी नपुंसकता को त्यागें, आत्म-विश्वास के साथ अपने स्वभाव और शक्ति के रूपान्तरण के लिए सजग और प्रयत्नशील हों। . ___ आज की तारीख़ में हमारा स्वभाव क्या है? हमारी जीवन-शक्तियाँ विपथगामी हैं या सत्पथगामी! हमें इसका जायदा लेना चाहिए ध्यान पूर्वक, धैर्य-पूर्वक, शान्ति पूर्वक। ध्यान आधार है रूपान्तरण का। ध्यान आयाम है शक्ति के सृजन का। मनुष्य अपना रूपान्तरण कर सकता है, इसलिए अनुरोध है, बाकी के प्राणी वैसे ही जीने को विवश हैं जैसी उनकी प्रकृति है। अगर मनुष्य समर्थ है और समर्थता का उपयोग न करे तो फिर मनुष्य, मनुष्य कहाँ हुआ चौपाये की सुधरी हुई नस्ल भर कहलाएगा। ध्यान से शक्ति का रूपान्तरण / ५५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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