Book Title: Dhyan ka Vigyan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 46
________________ बनती भी बिगड़ जाएगी। धीरज धर लिया, तो बिगड़ती बात भी सुधर जाएगी। बहुधा मैंने पाया है कि धीरज न होने के कारण ही हम काफी कुछ पाकर भी उसे खो बैठते हैं। तब दोष हम चाहे जिसके मत्थे मढ़ दें, पर हक़ीक़त यह है कि हमारा अधैर्य ही हमारी निष्फलता का दोषी बनता है। कुछ दिन पहले की बात है : एक साधिका के मन में यह तीव्र उत्कण्ठा और अभीप्सा रही कि उसे मुक्ति मिले। वर्ष भर के दौरान वह जब भी मुझसे मिलती, वह अपनी अभीप्सा और बेचैनी मेरे सामने रखती। मेरा सुझाव रहता कि मुक्ति के लिए धैर्य चाहिये। हम बीज के सिंचन पर ध्यान नहीं देते। केवल फूल-फूल कहने और पुकारने से क्या होगा? हमें शक्ति, श्रम और सिंचन तीनों का समावेश करना होगा। हमें अचेतन मन तक उतरना होगा। उसे भी प्रगट और विसर्जित करने का अवसर देना होगा। मैं तो इतनासा ही कहूँगा कि अनंत के मार्ग की ओर कदम उठाये हैं तो हममें धैर्य भी अनंत चाहिये। धीरज धरो, जीवन में ध्यान के विकास के लिए यह विकास का चौथा सूत्र है। बीज से क्या फूटा, भले ही वह आपका इच्छित या अभीप्सित न हो, पर उसकी उपेक्षा न करें। वह भी उपयोगी ही है। बीज से हमें फूल चाहिये, फल चाहिये, पर ध्यान रखें बीज में केवल फूल ही नहीं है। बीज में पत्ते भी हैं, कांटे भी हैं, डालियाँ और तना भी है। भीतर जो होगा, फूटेगा, निकलेगा। घाव फूटेगा, तो मवाद भी निकलेगा। मवाद के निकल जाने के बाद जो उजागर होगा, उसका नाम स्वास्थ्य है। उसका नाम चैतन्य-उपलब्धि है। हम अपने विश्वास, भावना और अभ्यास को डिगने न दें, यह इस चौथे सूत्र का सार है, और अन्तिम सुझाव यह है कि जहाँ तक हो सके मादक पदार्थों के सेवन से परहेज रखें, उत्तेजक परिस्थितियों से स्वयं को बचा कर रखें। परिस्थिति चाहे जैसी सामने आ जाये, हम अपने आपको संतुलित रखें। न कोई शिकायत, न कोई टिप्पणी, अपना राम तो सदा मस्त और आनंदित रहे। पुख्ता तबओं पर हवादिस का नहीं होता असर, कोहसारों पर निशाने, नक्शे पा मिलता नहीं। जिनके हृदय में मक्कमता आ गई, उन पर हवादिसों का, बुरी घटनाओं Jain Education International For Personal & Private Use Only /३७ www.jainelibrary.org

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