Book Title: Dharmshiksha Prakaranam
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ (प्रकाशकीय जो कुछ आत्मा का, व्यक्ति का, समाज का हित करे वह धर्म की परिभाषा के अन्तर्गत आता है। आत्मा के संदर्भ में जो कार्य या गुण आत्मा को पवित्रता की ओर ले जाते हैं और अन्ततः सद्गति प्रदान करते हैं वे धर्म का अंग हैं। जो शिक्षा हमें ऐसे श्रेयस गुणों की प्राप्ति करावे, वही धर्म शिक्षा है। आप्त पुरुषों की वाणी वही मार्ग दिखाती है। प्रस्तुत पुस्तक में आध्यात्म मार्ग की ओर सहायक अट्ठारह विषयों का चयन किया गया है। इन विषयों के दोष दिखा कर श्रेय मार्ग के कर्तव्यों का प्रतिपादन किया गया है। ___ इस दुर्लभ ग्रन्थ की एक मात्र पाण्डुलिपि जैसलमेर भण्डार में है। म० विनयसागरजी ने इसे प्रकाशन योग्य आकार दिया है। आगमवेत्ता पूज्य मु० जम्बूविजयजी के विशेष आग्रह और प्रेरणा से इसे संयुक्त प्रकाशन के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है धर्म प्रेमी पाठक व पुरा-साहित्य के अध्येता विद्वान् पाठक इस प्राकृत भारती पुष्प संख्या १७१ को उपयोगी पाएँगे। प्रकाशन कार्य से जुड़े सभी सहयोगियों का धन्यवाद। जितेन्द्र भाई सिंघवी ट्रस्टी, श्री सिद्धि भुवन मनोहर जैन ट्रस्ट पालड़ी, अहमदाबाद देवेन्द्र राज मेहता संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर ट्रस्टी, श्री जेन आत्मानंद सभा भावनगर मंजूल जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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