Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 183
________________ एस धम्मो सनंतनो से तो दो। तुम कम से कम इतना तो मुझे गौरव दो कि मैं भी तुम जैसा आदमी हूं। नीत्से की बात में बल है। जीसस ने कहा है : जो तुम्हें चांटा मारे, दूसरा गाल उसके सामने कर देना। नीत्से कहता है, यह भूलकर मत करना, क्योंकि इससे बड़ा अपमान दूसरे का और क्या होगा? तुमने उसे कीड़ा-मकोड़ा समझा। कम से कम उसे आदमी होने का गौरव तो दो। उसने चांटा मारा है, तुम भी एक चांटा उसे मारकर यह तो कहो कि हम दोनों बराबर हैं। मैं हाथी, और तुम कुत्ता ! यह तो बहुत बड़ा अपमान हो जाएगा। अब फर्क को तुम समझ लो। तुम दूसरे को इसलिए भी मारने से रोक सकते हो कि जाने दो, कुत्ते हैं। तब यह उपेक्षा हुई, अहिंसा न हुई। और तुमने दूसरे को मारने से इसलिए रोका अपने को कि दूसरा भी तुम्हारा ही स्वरूप है, कैसे मारो? दूसरे ने भूल की है, उसकी भूल का सुधार करना है, दया करनी है, करुणा करनी है, उसकी भूल को बढ़ाना तो नहीं है! दूसरा गलत है, इसलिए तुम भी गलत हो जाओ, यह तो कहां की समझदारी हुई? एक गलती के उत्तर में दूसरी गलती गलती को दुगना कर देगी। लेकिन दूसरा क्षुद्र है, दो कौड़ी का है, कुत्ता है, ऐसा मानकर अगर तुम खड़े रहे. तो ऊपर से तो दोनों में ही उपेक्षा साफ-साफ मालूम होगी, एक सी मालूम होगी, भीतर बड़ा फर्क हो गया। __ बुद्ध और महावीर के वचनों को जैन और बौद्ध भी नहीं समझ पाए। क्योंकि यह बिलकुल स्वाभाविक था, अहिंसा उपेक्षा बन जाए, यह सरल था। करुणा बनने की बजाय तिरस्कार बन जाए, यह सरल था। तो फिर अहिंसा के नाम पर हिंसा ही जारी रही। बुद्ध और महावीर के वचन भी प्रेम की तरफ ही इशारा करते हैं, यद्यपि उनका इशारा नकारात्मक है। नकारात्मक इशारे के भी कारण हैं। क्यों बुद्ध ने चुना नकारात्मक इशारा? क्या प्रेम कह देने में कुछ अड़चन थी? कोई उनके मुंह पर ताला लगा था? कह देते, प्रेम। जैसे जीसस ने कहा कि प्रेम ही परमात्मा है। क्या अड़चन थी? कौन सी जंजीरें थीं उनकी जबान पर? कुछ कारण थे। एक कारण यह था कि अगर तुमसे कहो कि दूसरे को सुख दो, तो तुम सुख के नाम पर ही दूसरे को दुख देने लगते हो। तुमने बहुतों को दुख दिया है सुख के नाम पर। और जब तुम सुख के नाम पर देते हो, तब तुम्हें कोई रोक भी नहीं सकता, क्योंकि तुम ऐसा महान उपकार कर रहे हो। तुम अपने बच्चे को डांटते हो, डपटते हो, मारते हो। और कहते हो, तेरे सुख के लिए, तेरे सुधार के लिए, तेरे जीवन के उद्धार के लिए। मनस्विद कहते हैं कि मां-बाप ने जितना अनाचार बच्चों के साथ किया है, किसी दूसरे वर्ग ने किसी और के साथ नहीं किया। सबसे बड़ा अनाचार पृथ्वी पर 168

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