Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 280
________________ आत्म-स्वीकार से तत्क्षण क्रांति मोह बनने लगा। जहां मोह बनता है वहां दुख होता है। दुख से तुम मुक्त न हो सकोगे जब तक मोह से मुक्त न हो जाओ। लेकिन मोह से मुक्त होने का एक ही उपाय है कि मुझे और मेरे शरीर को अलग-अलग देखो। ठीक है, शरीर की फिकर करनी उचित है, चिंता लेनी उचित है, हिफाजत करनी उचित है। फिर भी वह जाएगा। और एक बार संबोधि की घटना घट जाए, तो शरीर से संबंध टूट जाता है। वह खयाल भी तुम समझ लो। मेरा शरीर कुछ भी करके पूरा स्वस्थ नहीं हो सकता; क्योंकि शरीर के स्वास्थ्य के लिए एक अनिवार्य बात है, वह खतम हो गयी है। मेरा संबंध उससे टूट गया है। जैसे नाव किनारे से बिलकुल खुल गयी है। कुछ छोटी-मोटी खंटी बची हैं जिनसे किनारे से रुकी हुई है-रुकी है कि तुम्हारे थोड़े काम आ जाऊं। लेकिन यह रुकना ज्यादा देर नहीं हो सकता। और शरीर पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सकता। जिस आधार पर शरीर स्वस्थ होता है-तादात्म्य...। इसीलिए तो तुम एक खयाल समझने की कोशिश करोः जो व्यक्ति भी इस बात को ठीक से जान गया कि मैं शरीर नहीं हूं, वह फिर दुबारा शरीर में न आ सकेगा। जो भी जाग गया, वह दुबारा शरीर में न आ सकेगा। क्योंकि शरीर में आने का जो मौलिक आधार है कि मैं शरीर हूं, वह छूट गया-तादात्म्य टूट गया। जैसे तुमने शराब पी हो और तुम रास्ते पर चलो तो डगमगाते हो; लेकिन शराब उतर गयी, फिर तो नहीं डगमगाओगे। फिर तुम डगमगाने की कोशिश भी करो तो भी तुम पाओगे कि कोशिश ही है, डगमगा नहीं पा रहे। __ शरीर से जो संबंध है आत्मा का, उसका सेतु है तादात्म्य। मैं शरीर हूं, इसलिए शरीर से आत्मा जुड़ी रहती है। शरीर थोड़े ही तुम्हें पकड़े हुए है, तुम्हीं शरीर को पकड़े हुए हो। जब तुम जाग जाते हो, जब तुम्हें लगता है कि मैं शरीर नहीं हूं, हाथ ढीला हो जाता है। फिर तुम शरीर में होते भी हो तो भी शरीर में तुम्हारी जड़ें नहीं रह जातीं; थोड़ी-बहत देर चल सकते हो। फिर शरीर घर नहीं है, सराय है; और कभी भी सुबह हो जाएगी और चल पड़ना होगा। तो तुम्हारे दुख को मैं अनुभव करता हूं। तुम्हारी पीड़ा समझता हूं। कुछ किया नहीं जा सकता। तुम मेरे शरीर में और मुझमें फर्क करना शुरू करो। और यह फर्क तभी हो सकता है जब तुम अपने भीतर फर्क करो, क्योंकि वहीं से तुम्हें समझ आनी शुरू होगी। मैं समझ नहीं पाया हूं अब तक यह रहस्य मरने से क्यों सारी दुनिया घबराती है क्यों मरघट का सूनापन चीखा करता है जब मिट्टी मिट्टी से निज ब्याह रचाती है 265

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