Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ एस धम्मो सनंतनो फिर मिट्टी तो मिटती भी नहीं कभी भाई वह सिर्फ शक्ल की चोली बदला करती है संगीत बदलता नहीं किसी के सरगम का केवल गायक की बोली बदला करती है शरीर तो आते हैं, जाते हैं। बहुत आए, बहुत गए। अनंत बार शरीर आए और गए। शरीर में स्वास्थ्य तो धोखा है; क्योंकि शरीर में अमृत हो ही नहीं सकता। वह दोस्ती ही मरणधर्मा से है। वह तो टूटेगी। लेकिन उसके टूटने से कुछ भी नहीं टूटता। संगीत बदलता नहीं किसी के सरगम का केवल गायक की बोली बदला करती है तो बोली पर बहुत ध्यान मत दो, सरगम को पकड़ो। मेरी बोली पर मत जाओ, मेरे सरगम को पकड़ो! मेरे घर को मत देखो, मुझे देखो! घर की हिफाजत जितनी कर सकते हो, करो। जितनी देर रुक जाए, उतना तुम्हारे काम का है। लेकिन रोओ मत, दुखी मत होओ। क्योंकि उस दुख में और रोने में, आंसुओं में जितना समय गंवाया, वह जागने में लगाना उचित है। आज इतना ही। 266

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286