Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 261
________________ एस धम्मो सनंतनो सकता है उस आदमी की जबर्दस्ती ने उस स्त्री का मुंह बंद कर दिया हो, लेकिन यह बात कुछ जीत की न हुई। अगर अतिप्रश्न है तो पहले ही कह देते कि एक प्रश्न है जो न पूछ सकोगे। तो निष्प्रश्न तो न कर पाए तुम। उत्तर सभी तो न दे पाए। संसार को किसने सम्हाला है? तो कहा, ब्रह्म ने। और गार्गी ने कुछ गलत पूछा? अगर सम्हालने का प्रश्न सही है तो फिर परमात्मा को, ब्रह्म को किसने सम्हाला है—यह प्रश्न भी उतना ही संगत और सही है। गौएं ले जानी थीं, एक बात! सोने पर नजर थी, एक बात! लेकिन यह तो अभद्रता हो गयी। _और सारे पंडित भी याज्ञवल्क्य से राजी हुए। शायद पुरुष का अहंकार दांव पर लग गया होगा। गार्गी अकेली थी-स्त्री थी। कहते हैं, उसके बाद ही स्त्रियों को वेद का अध्ययन करने की मनाही कर दी गयी। ये बेतुके प्रश्न उठा देती हैं बीच में। फिर हिंदुओं ने स्त्रियों को वेद पढ़ने का । मौका न दिया। न पढ़ेंगी, न इस तरह के प्रश्न उठा सकेंगी। लेकिन उस स्त्री ने बड़ी सीधी सी बात पूछी थी, छोटे बच्चों की तरह सीधी बात पूछी थी। बात में कहीं कोई गलती न थी, लेकिन मैं जानता हूं, याज्ञवल्क्य की मुसीबत थी! अगर गार्गी सही है, तो फिर सारे प्रश्न और सारे उत्तर व्यर्थ हो जाते हैं। फिर तो सारा दर्शनशास्त्र का व्यवसाय व्यर्थ हो जाता है। मैं तुम्हें यही कह रहा हूं कि किसी भांति तुम दर्शन से मुक्त हो जाओ, तो तुम ज्ञान को उपलब्ध होओगे। ये फलसफा की ऊंची बातें, बस मालूम होती हैं ऊंची हैं। इनकी बुनियाद कहीं नहीं। ये भवन ताश के पत्तों के भवन हैं। हवा का जरा सा झोंका-गार्गी का छोटा सा प्रश्न-भवन गिर गया! क्रोध उठ आया। मैं तुमसे कहना चाहता हं, न तो तुम्हारे जन्म का कोई कारण है, न तुम्हारे जीवन का कोई कारण है। वृक्ष हरे हैं, क्योंकि हरे हैं। तुम जी रहे हो, क्योंकि तुम जी रहे हो। तुम्हें मेरी बात जरा कठिन लगेगी। क्योंकि तुम मेरे पास भी उत्तर खोजने आए हो। मैं तुम्हें उत्तर देने को उत्सुक नहीं हूं। मैं तुम्हारे प्रश्न को गिरा देने में उत्सुक हूं, उत्तर देने में उत्सुक नहीं हूं। क्योंकि उत्तर तो मैं कोई भी दूंगा, प्रश्न थोड़े दिन में फिर रास्ता बनाकर खड़ा हो जाएगा। और मैं तुमसे यह नहीं कहना चाहता कि तुम्हारा प्रश्न अतिप्रश्न है। ऐसी बेहूदगी मैं न करूंगा! ऐसी अभद्रता, जो याज्ञवल्क्य ने की, मुझसे न हो सकेगी! मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हारा प्रश्न अतिप्रश्न नहीं है, निरर्थक है। इतना निरर्थक है कि उसके उत्तर की खोज में जाना जरूरी नहीं है। गए, तो खाली हाथ ही लौटोगे। जीवन है। जीवन को परमात्मा कहो, कोई फर्क नहीं पड़ता-नाम की बात है। नाम तुम्हारी मौज। तुम्हारी पसंदगी की बात है। ईश्वर कहो; पर ईश्वर है। और इस है से गहरे जाने का कोई उपाय नहीं है। यह है आत्यंतिक रूप से गहरा है। इस है की कोई थाह नहीं। तुम यह नहीं कह सकते कि यह है कहां सम्हला है ! माना गहरा 246

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