Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 273
________________ एस धम्मो सनंतनो वह जाने। जो उसे ठीक लगा, उसने किया। जो उसके स्वभाव के अनुकूल पड़ा, उसने किया। कहीं मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उसने गलत किया। अपना-अपना ढंग है। हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे कहते हैं कि गालिब का है अंदाजे-बयां और सुखनवर तो और भी बहुत अच्छे-अच्छे हैं। गीत गाने वाले तो बहुत हैं। कहते हैं कि गालिब का है अंदाजे-बयां और अपने-अपने अंदाज हैं। तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उस गुरु की कोई निंदा है मेरे मन में। जो उसने किया, उसने किया। जो उससे हो सकता था, हुआ। यही उसे स्वाभाविक रहा होगा, यही सहज था। जो मुझे सहज है, मैं कर रहा हूं। __ इस बात को मैं तुम्हें कितने ढंग से कहं कि मेरे मन में तलना नहीं है। और तुम्हारे मन में तुलना है। इसलिए बड़ी चूक होती है। जब भी मैं कुछ कहता हूं, तुम तुलनात्मक ढंग से सोचने लगते हो। जब मैं बुद्ध पर बोलता हूं तो मैं कहता हूं, अहा! ऐसे वचन तो कभी किसी ने कहे ही नहीं! अब तुम मुश्किल में पड़े। क्योंकि यही मैंने महावीर पर बोलते हए भी कहा था, कि ऐसे वचन तो किसी ने कभी कहे ही नहीं। और यही मैंने कृष्ण पर बोलते हुए कहा था। अब तुम मुश्किल में पड़े! अब तुम कहने लगे, यह तो विरोधाभास हो गया। अगर कृष्ण ने ऐसे वचन कहे थे कि जो किसी ने न कहे, तो फिर यही वचन बुद्ध के संबंध में नहीं कहना चाहिए। तुम तुलना कर रहे हो। मैं तुलना नहीं कर रहा हूं। मैं जब बुद्ध के वचनों की बात कर रहा हूं, तो बुद्ध के अतिरिक्त और कोई मेरे खयाल में नहीं है। जब मैं कहता हं, ऐसे वचन किसी ने नहीं कहे, तो मैं सिर्फ बुद्ध के वचनों के आनंद से तरोबोर हूं, डूबा हूं। अभी तुम कृष्ण की बात भी मत उठाना, नहीं तो कृष्ण मुश्किल में पड़ेंगे। अभी तुम महावीर को बीच में ही मत लाना, मैं उनको हटा दूंगा रास्ते से। जब महावीर की मैं बात कर रहा हूं, तब मैं उनमें डूबा हूं। तुम मेरी बात को समझने की कोशिश करो। जब मैं गौरीशंकर के पास खड़ा हूं तो मैं कहता हूं, अहा! ऐसा कोई पर्वत-शिखर नहीं। इससे तुम यह मत समझना कि मैं यह कह रहा हूं कि दूसरे पर्वत-शिखर इस पर्वत-शिखर के सामने फीके हैं। यह मैं कह ही नहीं रहा। मैं इतना ही कह रहा हूं कि यह पर्वत-शिखर इतना सुंदर है कि ऐसे पर्वत-शिखर हो ही कैसे सकते हैं! यही मैं कंचनजंघा के सामने भी खड़े होकर कहूंगा। क्योंकि होगा गौरीशंकर ऊंचा बहुत, ऊंचाई से कहीं कुछ सब ऊंचाइयां थोड़े ही होती हैं। सौंदर्य और भी हैं! तुम मेरे वक्तव्यों को तुलना मत बनाना। मेरे वक्तव्य आणविक हैं। एक-एक अलग-अलग हैं। तुम मेरे वक्तव्यों की माला मत बनाना। एक-एक मनका 258

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