Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 241
________________ एस धम्मो सनंतनो ___ यह खेल वैसा ही है जैसे लोग ताश खेलते हैं। ताश के नियम होते हैं, नियम का पालन करना पड़ता है दोनों खिलाड़ियों को। अगर एक भी खिलाड़ी कह दे कि हम इस चिड़ी के बादशाह को बादशाह नहीं मानते, तो खेल खतम! अब चिड़ी का बादशाह कोई है थोड़े ही! कागज पर बनी तस्वीर है। दो आदमियों की मान्यता है कि चिड़ी का बादशाह है। पत्नी-पति सब चिड़ी के बादशाह हैं। एक ने कह दिया कि नहीं मानते, तलाक हो गया! मान्यता का खेल है। शतरंज के मोहरे देखे? हाथी-घोड़े सब चलते हैं। लोग जान लगा देते हैं, तलवारें खिंच जाती हैं, प्राण लगा देते हैं, कट मरते हैं और वहां कुछ भी नहीं है; लकड़ी के हाथी-घोड़े हैं। आदमी के लड़ने का शौक ऐसा है! असली हाथी-घोड़े न रहे। असली हाथी-घोड़े से लड़ना जरा महंगा हो गया और मूढ़तापूर्ण हो गया, तो उसने कल्पना के हाथी-घोड़े ईजाद कर लिए हैं। तुम चकित होओगे, अमरीका में स्त्री और पुरुषों की रबर की बनी हुई प्रतिमाएं बिकती हैं। असली हाथी-घोड़े महंगे पड़ गए। अब असली स्त्री को रखना एक उपद्रव है। असली है, उपद्रव होगा ही। गए एक रबर की स्त्री खरीद लाए; अब तुम्हारी जो मर्जी हो, जो भी उससे कहना हो कहो, वह मुस्कुराए चली जाती है। तुम्हारी जो मर्जी हो–ठुकराओ, सिर पर रखो, राजरानी बनाओ, कि उठाकर बाहर सड़क पर फेंक आओ-वह हर हालत में मुस्कुराए चली जाती है। वह सिर्फ रबर की स्त्री है। आदमी उस पर भी सपने जोड़ लेता है। तुमने ऐसे लोग देखे होंगे, तुमने अपने भीतर भी ऐसे आदमी को पाया होगा, जो तस्वीरें इकट्ठी कर लेता है। कागज पर खिंचे रंग की रेखाएं, सुंदर स्त्रियों की तस्वीरें लोग इकट्ठी करते रहते हैं। ___ माया का अर्थ है : तुम्हारी तस्वीरों का जाल। वहां सच कुछ भी नहीं है। और अगर सच है तो तुमने उसका पर्दे की तरह उपयोग किया है। ____पापकर्म करते हुए वह मूढजन उसे नहीं बूझता, लेकिन पीछे दुर्बुद्धिजन अपने ही कर्मों के कारण आग से जले हुए की भांति अनुताप करता है।' __तुम सबने किया है। इसलिए सूत्र समझना कठिन नहीं है। अब अनुताप छोड़ो। बहुत हो चुका। अब अनुताप छोड़ो, अब जागना शुरू करो। कठिन होगा। पुरानी आदत के विपरीत है। जन्मों-जन्मों की आदत है, लेकिन टूटेगी आदत। अगर सतत तुमने चेष्टा की, तो जैसे नदी की धार कठिन से कठिन, कठोर से कठोर चट्टान को भी तोड़ देती है, ऐसे ही आदत भी टूट जाती है। आदत पत्थर की जैसी है। होश जलधार है-बड़ी कोमल-लेकिन अंततः जीत जाती है। आंधियां चाहे उठाओ बिजलियां चाहे गिराओ. . जल गया है दीप तो अंधियार ढलकर ही रहेगा थोड़ी ही टिमटिमाती रोशनी सही, कोई फिकर नहीं, सूरज ज्यादा दूर नहीं। 226

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