Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 250
________________ अशांति की समझ ही शांति स्वतंत्रता होती और तुम्हें कोई दंड देने वाला न होता, कोई निंदा करने वाला न होता, तो तुम यही करते, मजे से करते। लेकिन बड़ी मुश्किल है, दंड है, सजा है। और अगर यहां बच जाओगे तो परलोक में न बच सकोगे; वहां का डर है। अपराध का अर्थ है, करना तो तुम यही चाहते हो, लेकिन दूसरे नहीं करने दे रहे हैं। और पकड़े जाने का भय है। इसे समझना। मैं स्कूल में विद्यार्थी था, तो मेरे उस स्कूल में एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति शिक्षक थे। वे मुसलमान थे; और जिन शिक्षकों के करीब मैं आया उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे। हमेशा वे परीक्षा के समय में सुपरिटेंडेंट होते थे। सबसे बुजुर्ग आदमी थे। जब पहली दफा में परीक्षा दिया और वे सुपरिटेंडेंट थे, तो मैं बड़ा चकित हुआ। वे अंदर आए और उन्होंने कहा कि बेटो, अगर चोरी करनी हो, करना; पकड़े मत जाना। हम पकड़े जाने के खिलाफ हैं। अगर तुम्हें नकल करनी हो दूसरे की, कुशलता से करना। पकड़े गए, तो मुझसे बुरा कोई नहीं; न पकड़े गए, तुम्हारा सौभाग्य! अगर तुम्हें भरोसा न हो, डर हो कि पकड़े जाओगे, तो दे दो जो भी तुम ले आए हो छिपा कर। ___ अनेक लड़कों ने निकालकर अपनी चीजें दे दी, क्योंकि यह आदमी बड़ा खतरनाक मालूम हुआ। यह बिलकुल सीधी-सीधी बात कह रहा है, बात बिलकुल साफ कह रहा है। हमें कुछ तुम्हें...तुम गलती कर रहे हो, इससे हमें मतलब नहीं है; गलती तभी है जब पकड़ी जाए। अगर तुम बचकर निकल सकते हो, मजे से निकल जाओ। मगर हम भी पूरी कोशिश करेंगे पकड़ने की। __ अपराध का मतलब यही होता है कि तुम्हें पकड़े जाने का डर है; पकड़े जाने की संभावना से तुम पीड़ित हो। और इसीलिए समाज ने कानून बनाया है, पुलिस बनायी है, अदालत बनायी है, मजिस्ट्रेट बिठाया है। और इतने से भी काम नहीं चलता है, क्योंकि इतने से भी तुम धोखा दे सकते हो। आखिर ये सब आदमी हैं, तुम भी आदमी हो। तो कितने ही कुशल बिठा दो तुम न्यायाधीश, आखिर चोर भी उतनी ही कुशलता खोज सकता है। कितने ही कुशल तुम बिठा दो पुलिस वाले, लेकिन चोर भी ज्यादा कुशल हो सकता है। __ सच तो यह है कि पुलिस वाले को तुम कितना पैसा देते हो! तुम कोई बहुत कुशल आदमी नहीं पा सकते। मजिस्ट्रेट को भी तुम क्या देते हो! अगर कोई कुशल आदमी होगा, तो मजिस्ट्रेट होना पसंद न करेगा। उसके लिए जिंदगी में और बड़े मुकाम हैं। वह जिंदगी में और ज्यादा पा सकता है। मजिस्ट्रेट जो जिंदगीभर में पाएगा, वह एक दांव में पा सकता है। तो जो असली होशियार लोग हैं, वे तो बाहर रह जाते हैं। उनसे तुम कैसे बचाओगे? वे कोई न कोई रास्ता निकालते रहेंगे। वे कानून में से दांव-पेंच निकालते रहेंगे। तो फिर समाज ने भगवान की कल्पना की है, कि अगर तुम यहां से बच 235

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