Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 236
________________ अशांति की समझ ही शांति होता है ? बूढ़े आदमी क्रोधी हो जाते हैं, क्यों? ___जैसे-जैसे बूढ़े होते हैं, वैसे-वैसे कामवासना की तरफ जाना ग्लानिपूर्ण मालूम होने लगता है। घर में बच्चे हैं, बच्चों के बच्चे हैं, अब कामवासना में उतरने में बड़ी शर्म मालूम होने लगती है, बड़ा बेहूदा लगने लगता है! अब तो बच्चों के बच्चे जवान हो गए, वे प्रेम-रास रचा रहे हैं; अब ये बूढ़े रास रचाएं तो जरा शोभा नहीं देता, भद्दा लगता है! तो बूढ़े क्रोधी हो जाते हैं। तुमने खयाल किया, बूढ़ों के साथ जीना बड़ा मुश्किल हो जाता है। अगर तुम क्रोध को दबा लो, काम को दबा लो-लोभ पकड़ लेगा। इसलिए तुम एक बात देखोगे, लोभी कामी नहीं होते। लोभी जीवनभर अविवाहित रह सकता है-बस धन बढ़ता जाए! कंजूस को विवाह महंगा ही मालूम पड़ता है। कंजूस सदा विवाह के विपरीत है। स्त्री को लाना एक खर्च है; वह उपद्रव है। कंजूस विवाह से बचता है। और अगर विवाह कर भी लेता है किसी परिस्थितिवश, तो पत्नी से बचता रहता है। ____ मैं एक मित्र के घर में बहुत दिन तक रहा। उन्हें मैंने कभी अपनी पत्नी के पास बैठा भी नहीं देखा, बात भी करते नहीं देखा। और ऐसा भी मैंने निरीक्षण किया कि वे पत्नी से छिटककर भागते हैं। अपने बच्चों की तरफ भी ठीक से देखते नहीं, कभी बात नहीं करते। मैंने उनसे पूछा कि मामला क्या है ? तुम सदा भागे-भागे रहते हो। उन्होंने कहा कि अगर जरा ही पत्नी के पास बैठो, बैठे नहीं कि फलाना हार देख आयी है बाजार में, कि साड़ी देख आयी है; जरा हाथ दो उसके हाथ में कि बस जेब में गया, और कहीं जाता ही नहीं! बच्चों से जरा मुस्कुराकर बोलो, उनका हाथ जेब में गया! नौकर की तरफ जरा देख लो, वह कहता है, तनख्वाह बढ़ा दो। यह कंजूस आदमी है। इसने सब तरफ से सुरक्षा कर ली है। यह मुस्कुराकर भी नहीं देखता, क्योंकि हर मुस्कुराहट की कीमत चुकानी पड़ती है। यह पत्नी से बात नहीं करता, क्योंकि बात अंततः जेवर पर पहुंच ही जाएगी। कहां कितनी देर तक यहां-वहां जाओगे! स्त्रियों को कोई रस ही नहीं और किसी बात में-न वियतनाम में, न कोरिया में, न इजराइल में उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है। तुम बात शुरू करो, वे तुम्हें कहीं न कहीं से गहनों पर, साड़ियों पर, वस्त्रों पर ले आएंगी। इसलिए बात ही शुरू करना महंगा है। कंजूस काम से बचता है। कंजूस क्रोध से भी बचता है, क्योंकि क्रोध भी महंगा पड़ता है। झगड़ा-झांसा, अदालत, कौन झंझट करे। कंजूस बड़ी विनम्रता जाहिर करता है। झगड़ा-झांसा महंगा हो सकता है। इसलिए कंजूस वह भी नहीं करता। पर तुम खयाल करना, उसकी सारी ऊर्जा लोभ में बहने लगती है। उसका काम, क्रोध, सब लोभ बन जाता है। एक तरफ से दबाओगे, दूसरी तरफ से निकलेगा। यह झरना बहना चाहिए। 221

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