Book Title: Dhammapada 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 233
________________ एस धम्मो सनंतनो किया था, इसलिए पश्चात्ताप का कोई कारण नहीं। पश्चात्ताप मूढ़ता का हिस्सा है। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, क्रोध कर लेते हैं, फिर बहुत पछताते हैं। अब क्या करें? मैं उनसे कहता हूं, पहले तुम पश्चात्ताप छोड़ो। क्रोध तो तुमसे छूटता नहीं, कम से कम पश्चात्ताप छोड़ो। वे कहते हैं, पश्चात्ताप को छोड़ने से क्या होगा? पछताते-पछताते भी क्रोध हो रहा है, अगर पश्चात्ताप छोड़ दिया तो फिर तो हम बिलकुल क्रोध में पड़ जाएंगे। मैं उनसे कहता हूं, तुम थोड़ा प्रयोग तो करो। अगर तुमने पश्चात्ताप छोड़ दिया तो पश्चात्ताप से जो ऊर्जा बचेगी, वही तुम्हारा जागरण बनेगी। अभी क्या हो रहा है : क्षण में तो तुम सोए रहते हो, कर्म करते तो सोए रहते हो, जागते बाद हो-तुम्हारे जागने और जीवन का मेल नहीं हो पा रहा है। जरा सी चूक हो रही है। जब कृत्य करते हो तब सोए रहते हो, जब जागते हो तब कृत्य जा चुका होता है। उसको तुम पश्चात्ताप कहते हो। तुम पश्चात्ताप छोड़ो। क्रोध हो गया, कोई फिकर नहीं। अब यह मत कहो कि अब न करेंगे। यह तो तुम बहुत बार कह चुके हो। यह झूठ बंद करो। इस झूठ ने तुम्हारे आत्मसम्मान को ही नष्ट कर दिया है। तुम खुद ही जानते हो कि यह हम झूठ बोल रहे हैं। कितनी दफे बोल चुके हो। अब तुम किससे कह रहे हो, किसको धोखा दे रहे हो कि अब न करेंगे? यह तुमने कल भी कहा था, परसों भी कहा था। एक युवती ने दो दिन पहले आकर मुझे कहा कि एक युवक के मैं प्रेम में पड़ गयी हूं। लेकिन मुझे संदेह होता है। युवक ने मुझे कहा कि मैं तेरे लिए ही प्रतीक्षा करता था, जन्म-जन्म तेरी ही बाट जोही, अब तुझसे मिलना हो गया। मगर उस युवक के व्यवहार और ढंग से मुझे संदेह होता है, मैं क्या करूं? मैंने उससे कहा कि तू कम से कम दसवीं स्त्री है जिसने मुझसे यह खबर दी, उस युवक के बाबत। वह पहले भी दस से कह चुका है और ज्यादा से भी कहा होगा-दस मेरे पास आ चुकी हैं। उस युवक को भी शायद पता न हो कि वह क्या कह रहा है! न हमें पता है हम क्या कह रहे हैं, न हमें पता है हम क्या कर रहे हैं। हम किए चले जाते हैं, हम कहे चले जाते हैं। एक अंधी दौड़ है। तुमने कितनी बार कहा, क्रोध न करेंगे। अब इतनी तो लज्जा करो कम से कम कि अब इसे मत दोहराओ; ये शब्द झूठे हो गए। इनमें कोई प्रामाणिकता नहीं रही। इतना तो कम से कम होश साधो; मत करो क्रोध का त्याग, कम से कम यह झूठा पश्चात्ताप तो छोड़ो। लेकिन पश्चात्ताप करके तुम अपनी प्रतिमा को सजा-संवार लेते हो। तुम कहते हो, आदमी मैं भला हूं; हो गया क्रोध कोई बात नहीं, देखो कितना पछता रहा हूं! साधु-संतों के पास जाकर कसमें खा आते हो, व्रत-नियम ले लेते हो कि अब कभी क्रोध न करेंगे। ब्रह्मचर्य की कसम खा लेते हो। कितनी बार तुमने कसम खायी, थोड़ा सोचो तो! 218

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