Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee View full book textPage 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हे दयामय ! हे दयामय ! क्या दया का सिन्धु अब निर्जल बना है ? लहलहाता धर्म कानन आज क्या मरुथल बना है ? १ चंड कोशिक के बुझ सके हिंसाग्नि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक दिन धमकी दीवाली फिर यहां छाया अंधेरा, नाथ मानव को यहां अघ-ओघ ने है पुनः घेरा । मुक्ति पाकर विश्व के उपकार से भी मुक्त क्या मुम ? हमें नव सन्देश भेजा, होन इतने शक्त क्या तुम ? चेतना का भाग्य निर्माता पुनः पुद्गल बना है ॥ २ बस मर रहे प्यासे पपी है. इस रहे दानव सुबुध दया मैत्री बह गए आज हिंसा उदधिका है गगन द्वारा, तक पहुँचा किनारा । सबल का आहार स्वामी ! आज फिर निर्बल बना है ॥ काक अमृत पी रहे हैं, आह भर कर जी रहे हैं। ऐटम-: - प्रलय - जलधार प्रबोधक, कुछ नया उद्बोध भेजा, पेसा नाथ ! धर्म पयोद भेजा । ( अनुसंधान टाइटल ३ उपर ) For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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