Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 13
________________ मुनिराज को आते देख राजा प्रीतीवर्धन ने उन्हे भक्ति पूर्वक पड़गाहा| राजा प्रीतीवर्धन ने उस शार्दूल की खूब परिचर्या की एवं मुनिराज ने स्वयं एवं उत्तम आहार दिया । देवों ने वहां रत्नों की वर्षा की तब मुनिराज उसे पंच नमस्कार मंत्र सुनाया जिससे वह अठाइस दिन बाद समतारूपी ने राजा प्रीतीवर्धन से कहा- हे धरारमण ! दान के वैभव परिणामों में मरकर ऐशान स्वर्ग में देव हुआ। राजा के सेनापति, मंत्री, से बरसती हुई रत्नधारा को देख कर जिसे जाति स्मरण हो आया है पुरोहित ने भी राजा के आहारदान की अनुमोदना की जिसके प्रभाव वे ऐसा एक शार्दूल इसी पर्वत पर सन्यास वृत्ति धारण किए हुए है। सो तुम | तीनों मरकर ऐशान स्वर्ग में देव हुए। जब आप ऐशान स्वर्ग में ललितांगदेव उसकी योग्य रीति से परिचर्या करो, वह आगे चल कर भरत क्षेत्र के थे तब ये सब आपके परिवार के देव थे। वहां से चयकर ये सब क्रमश: प्रथमतीर्थक र वृषभनाथ का प्रथम पुत्र समाट भरत आपके मंत्री पुरोहित, सेनापति व सेठ बने । बस इस पूर्व भव के बंधन से होकर मोक्ष प्राप्त करेगा। आपका आपस में अत्यधिक स्नेह है। उस निर्जन वन में राजा वज जंघ एवं मुनिराज के बीच जब | यह सवादचल रहाथा, तब वहां है तपोनिधे ! ये नकुल, शार्दुल, बंदर एवं शूकर आदि चार जीव आपकी ओर टकटकी लगाये क्यों बैठे हैं। T यह व्याघ्र इसी देश मे हस्तिनापुर नगर में वेश्य दम्पत्ति का उग्रसेन नाम का पुत्र था-वह अधीनस्थ सेवकों को धमकाकर भण्डार से घी, चावल आदि वस्तुएं वेश्याओं के लिए भेजा करता था राजा को पता लगा तो पकड़ाकर खूब मार लगाई। वह मर कर व्याघ्र हुआ है। जैन चित्रकथा

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