Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 33
________________ इस तरह उग्र तपश्चर्या करते-करते उन्हे हजार वर्ष बीत गये, तब वे एक दिन पुरीमतालपुर नगर के पास शकट नामक वन में निर्मल शिला तल पर पद्मासन लगाकर बैठ गये। उस समय उनकी आत्मविशुद्धि उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी। फलस्वरूप क्षपक श्रेणी में प्रवेशकर शुक्ल ध्यान के द्वारा ज्ञानावरणीय, दर्शना वरणीय, मोहनीय एवं अंतराय इन चार घातिया कर्मों का नाश कर फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में सकल पदार्थों को प्रकाशित करने वाले केवल ज्ञान प्राप्त किया। जिनेन्द्र भगवान वृषभनाथ को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। यह जानकर धनपति कुबेर ने भव्य समवशरण की रचना की देवराज इन्द्र समस्त परिवार के साथ पुरीमतालपुर आया, महाराज भरत को जगदगुरू वृषभदेव को केवल ज्ञान होने की रचना की। उसी समय महाराज भरत के पुत्रोत्पति व आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट होने का समाचार मिला। राजा भरत अत्यधिक प्रसन्न हुए। वे भी भाई बंधु मंत्री पुरोहित मरूदेवी आदि परिवार के साथ के केवल ज्ञान महोत्सव में पुरीमतालपुर पहुंचे। उन्होंने अतिशयपूर्ण दिव्य ध्वनी में धर्म-अधर्म का स्वरूप समझाकर सम्यग्दर्शन ज्ञान, चरित्र का जीव, अजीव, आसव, बंध, संवर, निर्जरा-मोक्ष इन सात तत्वों का पुग्दल, धर्म-अधर्म आकाश एवं काल इन छ: द्रव्यों का, पुण्य-पाप का एवं लोक-अलोक का स्वरूप बताया। जब तक प्राणियों की दृष्टि बाह्य भौतिक पदार्थों में उलझी रहेगी, तब तक उसे आत्मीय आनन्द का अनुभव नही हो सकता। उसे प्राप्त करने के लिए तो सब ओर से नाता तोड़कर कठिन तपस्या करने की आवश्यकता है। इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने की व आत्मध्यान में अचल होने की आवश्यकता है। ambilu Web RANGLAM असंख्य नर-नारियों ने व्रत विधान धारण किये थे। सम्राट भरत राजधानी लौट आये। जैन चित्रकथा

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