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भगवान वृषभदेव ने अनेक देशों में विहार किया। वे आकाश में चलते थे। देवलोग उनके पैरों के नीचे सुवर्ण कमलों की रचना करते जाते थे। मंद सुगन्धित वायु बहती थी। देव जय-जयकार करते थे। पृथ्वी कांच की तरह निर्मल हो गयी थी। सब ओर सुभिक्ष हो गया था। उनके आगे धर्मचक्र तथा । अष्ट-मंगल द्रव्य चला करते थे।
इस प्रकार देश-विदेश में घूम-घूमकर वे कैलाशगिरी पहुंच कर आत्मध्यान में लीन हो गये।
चौबीस तीर्थकर भाग-1