Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 30
________________ उन्होंने राज्य व्यवस्था को महामण्डलिक रूप में संगठित किया। चार हजार राजाओं पर एक महामण्डलिक राजा नियुक्त किया। चार महामण्डलिक राजाओं पर स्वयं महामण्डलेश्वर होकर सबकी देखभाल करते थे। अपने पुत्रों में ज्येष्ठ भरत को युवराज बनाया तथा शेष पुत्रों को भी योग्य पदों पर नियुक्त किया। भगवान वृषभनाथ ने सब मनुष्यों को इक्षु (ईख) के रस का संग्रह करने का उपदेश दिया लोग उन्हे 'इक्ष्वाकु' कहने लगे। प्रजापालन के उपाय प्रचलित किये थे। इसलिए प्रजापति भी कहते थे। कुलधर, काश्यप आदि ब्रह्मा अनेक नाम से पुकारते थे। एक दिन प्रजापति वृषभनाथ राजसभा में बैठे थे। अनेक देव-देवियों के साथ सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र वहां आया। राजसभा में एक अप्सरा नीलांजना ने नृत्य शुरू किया। अचानक नीलांजना नृत्य करते-करते क्षण भर में विद्युत की भांति विलीन हो गई। तब इन्द्र ने रस भंग न हो इसलिए उसी के समान दूसरी अप्सरा को खड़ा कर दिया। वह भी नीलंजना की तरह ही नृत्य करने लगी। भेद विज्ञानी वृषभदेव से यह रहस्य छिपन सका, वे उदासीन हो गये। यह शरीर वायु के वेग से कम्पित दीप शिखा की भान्ति नश्वर है। यौवन संध्या की लाली के समान देखते-देखते नष्ट हो जाता है। शरीर इस आत्मा के साथ दूध एवं जल की तरह मिला हुआ है। वह भी समय पाकर आत्मा से पृथक हो जाता है। तब बिलकुल अलग रहने वाले स्त्री, पुत्र-धन, सम्पत्ति आदि में कैसे बुद्धि स्थिर की जा सकती है? यह प्राणी पाप के वश में नरक गति जाता है। तिर्यंचं गति में उष्ण, भूख-प्यास आदि अनेक दुख भोगता है। कदाचित मनुष्य भी हुआ तो दरिद्रता, रोग, मानसिक दुखों से दुखी होता है। इस तरह चारों गतियों में कहीं भी सुख का ठिकाना नहीं है। सच्चा सुख मोक्ष में ही प्राप्त हो सकता है एवं वह मोक्ष केवल मनुष्य पर्याय में ही प्राप्त किया जा सकता है। इस मनुष्य पर्याय को पाकर यदि मैंने आत्म कल्याण के लिए प्रयत्न नही किया तब मुझसे मुर्ख अन्य कौन होगा? AURI CO3opoor 5000 चौबीस तीर्थंकर भाग-1

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