________________
उधर भगवान वृषभनाथ की दूसरी रानी सुनन्दा के गर्भ में वज्रजंघ भव का सेनापति जो क्रम से अहमिन्द्र हुआ था। अवतीर्ण हुआ जिसका नाम बाहुबली था। जैसा नाम था वैसे ही गुण थे। उनकी धीर चेष्टाओं के सामने महादेवी यसस्वी के समस्त पुत्रों को मुंह की खानी पड़ती थी। भगवान वृषभनाथ के वज्रजंघ भव में अनुन्दरी नाम की बहिन थी वह कुछ समय बाद उसी सुनन्दा के गर्भ से सुन्दरी नाम की पुत्री हुई। इस प्रकार भगवान वृषभनाथका समय परिवार के साथ सुख से व्यतीत होता था।
वह समय अब सर्पिणी काल का था। इसलिए प्रत्येक विषय में ह्रास ही ह्रास होता था। कल्पवृक्षों के बाद बिना बोई हुई धान पैदा होती थी। अब वह भी नष्ट हो गई । औषधियों की शक्ति कम हो गई। मनुष्य खाने पीने के लिए दुखी होने लगे। सब ओर त्राहि-त्राहि मच गई। अपनी रक्षा का कोई उपाय नहीं देख कर लोग वृषभनाथ के पास पहुंचे -
हे त्रिभुवन पते हे दयानिधे! हम लोगों के दुर्भाग्य से कल्पवृक्ष तो पहले ही नष्ट हो चुके थे। पर अब रही सही धान्य आदि भी नष्ट हो गई है। इसलिए भूख-प्यास की बाधाऐं हम सबको अत्यधिक कष्ट पहुंचा रही है। वर्षा, धूप एवं सर्दी से बचने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। नाथ! इस तरह हम कब तक जीवित रहेंगे।
26
Code
पुत्र-पुत्रीयों को विद्या प्रदान के योग्य समझकर वर्णमाला सिखलाने के बाद ब्राह्मी को गणित शास्त्र तथा सुन्दरी को व्याकरण, छंद तथा अलंकार शास्त्र सिखलाए। ज्येष्ठ पुत्र भरत के लिए अर्थशास्त्र तथा नाटय शास्त्र वृषभसेन के लिए संगीत शास्त्र अनन्त विजय को चित्रकला तथा गृहनिर्माण विद्या, बाहुबली को कामतंत्र, सामुद्रिक शास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, हरिततंत्र अश्व तंत्र तथा रत्न परीक्षा शास्त्र पढ़ायें। इसी तरह अन्य पुत्रों को भी लोकोपकारी समस्त शास्त्र पढ़ाये। इस | प्रकार महाप्रतापी पुत्रों गुणवती पत्नियों के साथ विनोदमय जीवन बीताते हुए वृषभनाथ का दीर्घ जीवन क्षणभर समान बीतता गया । .....
lates
SAVAVA
10000
आप हम सब के उद्धार के लिए ही पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। आप विज्ञ हैं, समर्थ है, दया के सागर हैं, इसलिए जीविका के कुछ उपाय बतलाकर हमारी रक्षा कीजिए, प्रसन्न होइये।
चौबीस तीर्थकर भाग- 1