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एक दिन रात के समय महादेवी यशस्वी ने सोते समय रात्रि के पिछले प्रहर में सुमेरू पर्वत, सूर्य, चन्द्र, कमल, अग्नि एवं समद ये स्वप्न देखे। प्रातः महादेवी ने सपनो का फल महाराज वृषभनाथ से पूछा उन्होने हसते हुए कहा-करता तुम्हारे चक्रवर्ती, प्रतापी, कान्तिवान, लक्ष्मीवान, समस्त वसुधा का पालन कर्ता, गंभीर हृदय वाला, चरम शरीरी पुत्र उत्पन्न होगा। वह पुत्र इक्ष्वाकु वंश की कीर्ति बढ़ायेगा। अपने अतुल्य भुजबल को भरत
क्षेत्र के छहों खण्डों पर राज्य करेगा।
इसके अनन्तर व्याघ्र का जीव सुबाहु जो कि सर्वाथ सिद्धि में अहमिन्द्र हुआ था, वहां से चयकर महादेवी यशस्वी के गर्भ में आया। धीरे-धीरे शरीर में गर्भ के चिहन प्रकट हो गए। समस्त शरीर रक्तहीन हो गया। उस समय उनका मन वीर चेष्टाओं में रमता था। योद्धाओं के वीरताभरे वचन सुनती थी शूरवीरो की युद्ध कला देखकर प्रसन्न होती थी। ऐसा लगता है। कोई पराक्रमी पुरूष अवतार लेगा। क्रमश: नो महीने बीतने पर शुभलग्न में प्रात:काल तेजस्वी बालक को प्रसूत किया।
यह बालक सर्वभौम न समस्त पृथ्वी का अधिपति
अर्थात चक्रवर्ती होगा।
स्वप्नों का फल सुनकर महादेवी यशस्वी बहुत हर्षित हुई।
जिन राज वृषभदेव बहुत अधिक प्रसन्न हुए थे। मरूदेवी एवं नाभिराज के हर्ष का तो पारावार ही नहीं था। सम्पूर्ण नगरी पताकाओं से सजाई गई थी। राजा नाभिराज ने अभूतपूर्व दान दिया था। कच्छ, महाकच्छ आदि राजाओं ने मिलकर नाती का जन्मोत्सव मनाया एवं उसका नाम भरत रखा। भगवान वृषभनाथ के वज्रजंघ भव में जो आनन्द नाम का पुरोहित था एवं क्रम से सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ था। वह कुछ समय बाद महादेवी यशस्वी के गर्भ से वृषभसेन नाम का पुत्र हुआ। फिर क्रम से सेठ धन मित्र शार्दुलाय, वराहार्य एवं नकुलार्य के जीव इसी महादेवी के गर्भ से क्रम से अनन्त विजय, अनन्त वीर्य, अच्युत, वीर एवं वरवीर नाके पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह भरत के बाद निन्यानवे पुत्र तथा ब्राह्मी नामक एक पुत्री उत्पन्न हुई।
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जैन चित्रकथा
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