Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ कभी हाथी पर सवार हो कर नदी, तालाब उद्यान आदि की सैर करते। महाराज नाभिराज ने वृषभनाथ के बढ़ते हुए यौवन को देखकर उनकी कभी ऊंचे-ऊचे पहाड़ोकी चोटियो पर चढकर प्रकृति की शोभादेखत था। विवाह करना चाहा। इनका हृदय अभी से निर्विकार है- जब ये इस प्रकार राजकुमार वृषभनाथ ने सुख पूर्वक कुमार काल व्यतीत कर | बंधन मुक्त हाथी की भांति हठ कर तप के लिए वन को चले जावेंगे तब तरूणावस्था में प्रदार्पण किया। उस समय उनके शरीर की शोभा तप्त कंचन | दूसरे की कन्या का क्या होगा? सम्भव है विवाह कर देने से कुछ परिचित की तरह अत्यधिक भली मालूम होती थी। उस युवावस्था में भी राजपुत्र | | हो सकेंगे यह युग का आरम्भ है। सृष्टि की व्यवस्था एक प्रकार से नहीं के वृषभनाथ के मन पर विकार के कोई चिह्न प्रकट नहीं हए थे उनका बालकों बराबर है। इस युग में विवाह की रीति प्रचलित करना सृष्टि को व्यवस्थित जैसा उन्मुक्त हास्य एवं निर्विकार चेष्टाएं ज्यों की त्यों विद्यमान थी। बनाना आवश्यक है। ऐसा सोचकर पिता नाभिराज वृषभनाथ के पास गए। इस समय मानव समाज को सृष्टि का क्रम सिखलाने के लिए आप सर्वाधिक उपयुक्त है। इसलिए आप किसी योग्य कन्या के साथ विवाह करने की अनुमति दीजिए। उस समय विवाह की तैयारियां शुरू कर दी। शुभ मुहूर्त में राजा कच्छ की। बहिन यशस्वी एवं महाकच्छ की बहिन सुनन्दा के साथ भगवान वृषभनाथ का विवाह कर दिया । वे दोनो अनुपम सुन्दरी थी। पुत्र वधुओं को देखकर माता मरूदेवी का हृदय फूला न समाता था। अयोध्या में कई तरह के उत्सव मनाये गये। सपYOUT wwwA तब भगवान वृषभनाथ ने मंद मुस्कान से पिता के वचनों का उत्तर दिया महाराज नाभिराज मौन सम्मति पाकर बहुत प्रसन्न हुए। 24 चौबीस तीर्थकर भाग-1

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36