Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ कुछ समय के बाद चक्रवर्ती अजयघोष ने अठारह हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली। वरदत्त, वरसेन, चित्रांगद तथा मदन भी चक्रवर्ती के साथ दीक्षित हो गये। राजा सुविधि का अपने पुत्र केशव पर अधिक स्नेह था। इसलिए उन्होंने मुनि न होकर श्रावक के व्रत धारण किये। आयु के अन्त में महाव्रत धारण कर सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र हुए। केशव ने भी दीक्षा ली, आयु के अन्त में स्वर्ग में यतीन्द्र हुआ।आयु के अन्त में अच्युतेन्द्र पुण्डरीकणी नगरी के श्रीकान्ता तथा वज्रसेन नामक राजदम्पति के पुत्र हुआ। वहां उसका नाम वजनाभि था। वरदत्त, वरसेन, चित्रांगदा तथा मदन स्वर्ग में सामानिक देव थे। वहां से चयकर वजनाभिके विजय वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित नाम के छोटे भाई हुए। जो सोलहवें स्वर्ग में यतीन्द्र हुआ । वह कुबेदत्त तथा अनन्तमति नामक वैश्य दम्पति के धनदेव नामक पुत्र हुआ । वज्रनाभिके वज्रजंघ भव में जो मतिवर, आनन्द, धनमित्र तथा अकम्पन नाम के मंत्री पुरोहित सेठ तथा सेनापति थे। वे मरकर अहमिन्द्र हुए थे। अब वे वहां से चयकर वज्रनाभिके भाई हुए। वहां उसके सुबाहु, महाबाहु पीठ तथा महापीठ नाम रखे गये थे। राजपुत्र वज्रनाभि का शरीर पहले से ही बहुत सुन्दर था। यौवनावस्था आने पर अत्यधिक सुन्दर प्रतीत होने लगा। राजा वज्रसेन ने अपने पुत्र वज्रनागि को राज्यभार सौंपकर वैराग्य ले लिया। इधर वजनाभि की आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ। चक्ररत्न को आगेकर वज्रनाभि ने दिग्विजय की। धनदेव उका गृहपति नामक रत्न हुआ इस तरह नौ निधि तथा चौदह रत्नों के स्वामी सम्राट वज्रनाभि का समय सुख से बीतने लगा। COM COM COLOUVOLOOCROIDOTOUUDUOD LU GOODOOD 27TO महाराज वज्रनाभि अपने पुत्र वज्रदंत को राज्यभार सौंपकर सोलह हजार राजाओं, एक हजार पुत्रों, आठ भाइयों तथा श्रेष्ठी धनदेव के साथ तीर्थंकर देव के समीप दीक्षित होकर तपस्या करने लगे। वजनाभि ने भी वहीं सोलह भावनाओं का चिन्तन किया जिससे तीर्थकर प्रकृति का बंध हो गया। आयु के अन्त में सर्वाथसिद्धि में अहमिन्द्र हुए। यह अहमिन्द्र ही हमारे कथा नायक वृषभनाथ होंगें। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सुबाहु, पीठ, महापीठ तथा धनदेव शरीर त्याग कर अहमिन्द्र हुए थे, भगवान वृषभनाथ के साथ मोक्ष प्राप्त करेंगे।.... जैन चित्रकथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36