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पहिले लोग बहुत अधिक भद्र परिणामी होते थे, इसलिए उनसे किसी प्रकार का अपराध नहीं होता था। पर ज्यों-ज्यों समय बीतता गया त्यों-त्यों लोगों के परिणाम कुटिल होते गये एवं वे अपराध करने लगे। इसलिए नाभिराज ने एवं उनके पहिले कुलकरों ने अपराधी मनुष्यों को दण्ड देने के लिए | दण्ड विधान भी चलाया था। 'हा', 'मा', 'धिक' ये तीन प्रकार के दण्ड थे ।
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राजा नाभिराज की पत्नी का नाम मरूदेवी था। उसके समान सुन्दरी एवं सदाचारणी न हुई और न होगी। उनकी राजधानी अयोध्यापुरी थी। राजदम्पति अनेक प्रकार के सुख भोगते हुए बड़े आनन्द से वहां रहते थे। नये-नये उपायों से प्रजा का पालने करते थे। इन्ही राजदम्पति के पुत्र भगवान श्री वृषभनाथ से प्रसिद्ध हुए। भगवान वृषभनाथ प्रथम आदितीर्थंकर कहलाते थे।
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चौबीस तीर्थंकर भाग-1