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जब से कर्मयुग का आरम्भ हुआ तब से लोगों के हृदय भोग लालसाओं से बहुत कुछ विरक्त हो चुके थे। उस समय संसार को ऐसे देव दूत की आवश्यकता थी। जो सृष्टी के अव्यवस्थित लोगों को व्यवस्थित बनाए। उन्हें कर्तव्य का ज्ञान कराए. ये महान कार्य किसी साधारण मनुष्य से नही हो सकता था। उसके लिए तो किसी ऐसे महात्मा की आवश्यकता थी जिसका व्यक्तित्व बहुत विशाल हो। हृदय अत्यन्त निर्मल एवं उदार हो । उस समय वज्रनाभि चक्रवर्ती का जीव जो कि सवार्थ सिद्धि में अहमिन्द्र पद पर आसीन था। इस महान कार्य के लिए उद्यत हुआ। देवताओं ने उसका सहर्ष अभिवादन किया। सबसे पहले देवों ने भव्यता से स्वागत के लिए भव्य नगरी का निर्माण किया फिर उसमें नित्य प्रतिदिन में चार बार करोड़ों रत्नों की वर्षा की। एक दिन महारानी मरूदेवी स्वच्छ वस्त्र से शोभित शैया पर शयन कर रही थी। शीतल सुगन्धित वायु धीरे-धीरे बह रही थी। सुख की नींद आ रही थी। जब रात्रि समाप्त प्राय थी तब उसने आकाश में सोलह स्वप्न देखे। स्वप्न देखने के बाद उसने अपने मुख में प्रवेश करते हुए स्वेत वर्ण वाला एक बैल देखा।....
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जैन चित्रकथा