Book Title: Choubis Tirthankar Part 01
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ देवों के आसन अकस्मात कम्पायमान हुए जिससे उन्हें वृषभनाथ के गर्भारोहण का निश्चय हो गया। इन्द्र की आज्ञानुसार दिक्कुमारियां लक्ष्मी आदि देवियां जिन माता महारानी मरूदेवी की सेवा के लिए उपस्थित हो गई। इन्द्र आदि समस्त देवों ने अयोध्यापुरी में खूब उत्सव किया। रत्नों को बरसाते रहे। इस तरह आषाढ़ शुक्ला द्वीतीया के दिन उत्तरासाढ़ नक्षत्र में वजनाभि अहमिन्द्र ने स्वार्थसिद्धि से चयकर महादेवी मरूदेवी के गर्भ में स्थान पाया। चेत्र कृष्णा नवमी के दिन उत्तम लगन में प्रात: काल के समय मरूदेवी ने पुत्र रत्न प्रसव किया। वह सूर्य के समान तेजस्वी प्रतीत होता था। उस समय तीनों लोकों में उल्लास छा गया था। दिशाएं निर्मल हो गयी थी। अयोध्या नगरी की शोभा अनुपम प्रतीत होती थी। सौ धर्म स्वर्ग का इन्द्र भी इन्द्राणी के साथ अयोध्यापुरी की ओर चला। मार्ग में अनेक सुर नर्तकियां नृत्य करती जाती थी। सरस्वती वीणा बजाती थी। गंधर्व गीत गाते थे। भरताचार्य नृत्य की व्यवस्था कर रहे थे। देव सेना आकाश से नीचे उतरी। जैन चित्रकथा

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