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जिस समय जयसेन का विवाह होने वाला था। उसी समय श्रीधर
देव ने जाकर समझाया। नरक के समस्त दुखों की याद दिलाई । |जिससे उसने संसार से विरक्त होकर मुनि दीक्षा ले ली। कठिन तप के प्रभाव से मरकर पांचवे स्वर्ग में ब्रह्मेन्द्र हुआ।
यह सुन कर श्रीधर देव को बहुत दुख हुआ। वह सम्भिन्नमति तथा महामति के विषय में तो कर ही क्या सकता था हां शतमति को सुधार सकता था। वह शीघ्र ही दूसरे नरक में गया। वहां अवधिज्ञान से शतमति मंत्री के जीव को पहचान कर उससे कहा-
क्यों महाशय ! आप तो मुझे पहिचानते हैं न ? विद्याधरों के राजा महाबल का जीव हूँ। मिथ्याज्ञान के कारण आपको नरक के ये तीव्र दुख प्राप्त हुए हैं। अब भी यदि इनसे छुटकारा चाहते हो, तो सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान से अपने आपको अलंकृत करो।
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श्रीधर देव के उपदेश से नारकी शतमति ने शीघ्र ही सम्यग्दर्शन धारण कर लिया। वह आयु पूर्ण कर मंगलावती देश में राजदम्पति के जयसेन नाम का पुत्र हुआ।
कुछ समय बाद श्रीधरदेव स्वर्ग से चयकर जम्बूद्वीप के महावत्सकावती देश के राजदम्पति के सुविधि नामक पुत्र हुए। अभय घोष चक्रवर्ती उसके मामा थे। चक्रवर्ती के मनोहरा नाम की एक सुन्दर कन्या थी, जिसका विवाह सुविधि से हुआ। सुख से समय बिताने लगे। कुछ समय बाद राज्य का भार सुविधि को सौंप कर राजा मुनि हो गये। सुविधि राजकार्य में बहुत अधिक कुशल था। समय पाकर राजा सुविधि के केशव नामक पुत्र हुआ। राजा वज्रजंघ का जीव अनेक सुख भोगकर राजा सुविधि हुआ। श्रीमती का जीव उनका पुत्र केशव हुआ। शार्दूल का जीव इसी देश के राजा विभीषण व रानी प्रियदत्ता का वरदत नाम का पुत्र हुआ। सूकर का जीव अनन्त मति व नन्दिसेन राज दम्पति का वरसेन नाम का पुत्र हुआ। बंदर का जीव चन्द्रमती व रतिसेन नामक राजदम्पति के चित्रांगद नाम का पुत्र हुआ। नकुल का जीव चित्रमलिनी तथा प्रभन्जन नामक राजदम्पति के मदन नाम से प्रसिद्ध पुत्र हुआ।
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चौबीस तीर्थकर भाग-1