Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 329
________________ लेश्या और भाव व्यक्तित्व के तीन पहलु हमारे व्यक्तित्व के तीन पहलु हैं-भाव, विचार और व्यवहार । व्यवहार हमारी कायिक प्रवृत्ति है, कायिक आचरण है। विचार हमारी मानसिक प्रवृत्ति है। ये दोनों स्नायुओं से संबंधित हैं। मन भी स्नायविक प्रवृत्ति है और व्यवहार भी स्नायविक प्रवृत्ति है। भाव स्नायविक प्रवृत्ति नहीं है। वह लेश्या-केन्द्र से होने वाली क्रिया है । व्यवहार का नियंत्रण किया जा सकता है । इस प्रकार बैठो, इस प्रकार मत बैठो। यह करो, वह मत करो। यह सब स्नायविक प्रवृत्ति है। इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। वाणी की प्रवृत्ति पर नियंत्रण किया जा सकता है और मन की क्रिया पर भी नियंत्रण किया जा सकता है किन्तु जब हम व्यवहार और विचार से परे जाते हैं, भाव के जगत् में प्रवेश करते हैं, नियंत्रण कोई काम नहीं देता। नियंत्रण और शोधन की सीमा ___ हमारा यह प्रसिद्ध सूत्र है कि योग-प्रवृत्ति का, क्रियात्मक आचरण का त्याग किया जा सकता है, प्रत्याख्यान किया जा सकता है किन्तु आन्तरिक मलिनता का त्याग और प्रत्याख्यान नहीं किया जा सकता । प्रमाद और कषाय का त्याग कभी नहीं होता । जितना त्याग या प्रत्याख्यान होता है, वह साराका-सारा क्रियात्मक प्रवृत्तियों का होता है। वह क्रियात्मक प्रवृत्ति चाहे मन की हो, वाणी या शरीर की हो। सारा नियंत्रण, त्याग या प्रत्याख्यान होगा क्रियात्मक प्रवृत्तियों का । इसका तात्पर्य है कि स्थूल शरीर की चेतना तक, स्थूल शरीर की स्नायविक क्रिया तक ही त्याग और नियंत्रण होता है। भाव और लेश्या के क्षेत्र में नियंत्रण नहीं, शोधन होता है। हमारे में नियंत्रण का भी अवकाश है और शोधन का भी अवकाश है। हम नियंत्रण के क्षेत्र में शोधन को न लाएं और शोधन के क्षेत्र में नियंत्रण को न लाएं। दोनों की . अपनी-अपनी सीमाएं हैं। एक है-नियंत्रण की सीमा, एक है-शोधन की सीमा। रूपान्तरण का बिन्दु बहुत बार ऐसा होता है कि व्यक्ति नियंत्रण करना चाहता है, शोधन करना चाहता है, संकल्प करना चाहता है, अच्छा होना चाहता है, फिर भी यह वैसा हो नहीं पाता । त्याग करता है, प्रत्याख्यान करता है, दृढ़ निश्चय करता है परन्तु जो अन्तर में बदलना चाहिए वह नहीं बदलता, जो आदत बननी चाहिए, वह नहीं बनती । तब व्यक्ति के मन में प्रश्न उभरता है । यदि हम - स्नायविक स्तर पर इस प्रश्न को समाहित करना चाहें तो हो नहीं सकता। . स्नायविक स्तर की साधना केवल नियंत्रण तक ले जाती है, रूपान्तरण तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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