Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 362
________________ मस्तिष्क प्रशिक्षण स्वभाव को बदलना जटिल माना जाता । जिसका जो स्वभाव बन गया, आदत बन गई, वह चाहने पर भी कठिनाई से त्यक्त होती है । अनेक लोग हैं, अनेक स्वभाव और आदतें हैं। किसी में क्रोध का, किसी में घृणा का, किसी में लोभ का, किसी में काम-वासना का और किसी में भय का स्वभाव है । प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई नया स्वभाव होता ही है । ये सारे भाव हैं, वृत्तियां हैं। इन्हें बदलने की बात इसलिए कठिन है कि मस्तिष्क के विषय में हमारी जानकारी कम है। वर्तमान में हजारों-हजारों वैज्ञानिक मस्तिष्क के अध्ययन में लगे हुए हैं और प्रतिवर्ष इस विषय पर प्रचुर साहित्य सामने आ रहा है । फिर भी यह माना जा रहा है कि अभी तक मस्तिष्क का दस प्रतिशत भाग भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। कितना गूढ़ है मस्तिष्क ! मस्तिष्क के विषय में बहुत कम ज्ञान है इसीलिए परिवर्तन के सूत्र भी हस्तगत नहीं हो रहे हैं । वृति-प्रवृत्ति का केन्द्र प्राचीन साहित्य में हृदय विषयक चर्चा बहुत मिलती है पर मस्तिष्क के विषय में बहुत कम जानकारी प्राप्त होती है, जबकि हृदय से मस्तिष्क बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है । हमारे शरीर का हिस्सा मस्तिष्क बहुत उपयोगी और अत्यन्त शक्तिशाली है । संस्कृत में इसका एक नाम है 'उत्तमांग' । इसमें जीवन को संचालित करने वाली असंख्य शक्तियां विद्यमान हैं । क्रोध करना भी इसमें विद्यमान है और क्रोध पर नियंत्रण करना भी इसमें विद्यमान है । हमारी सारी वृत्तियों और प्रवृत्तियों के केन्द्र मस्तिष्क में हैं । स्वभाव का निर्माण भी वहीं से होता है और स्वभाव का परिवर्तन भी वहीं से होता है । परिवर्तन का कारण हम इस बात पर शारीरिक दृष्टि से विचार करें। मस्तिष्क का एक हिस्सा है भावनात्मक तंत्र, जिसे हाईपोथेलेमस कहा जाता है । दूसरा एड्रीनल ग्लेण्ड और तीसरा पिट्यूटरी या पिनियल । इनका साझा है । इन सब का योग मिलता है तो भाव और स्वभाव विकृत बनते हैं । इस साझा को तोड़ दिया जाए। इनमें से किसी एक पर कन्ट्रोल कर लिया जाए तो साझा टूट जाएगा और भाव विकृति की बात गौण बन जाएगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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