Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 364
________________ ३४८ चित्त और मन की विद्युत् तरंगें होती हैं-अल्फा, बीटा, डेटा, थेटा आदि-आदि। जब 'अल्फा' तरंगें अधिक होती हैं तब आदमी आनन्द से भर जाता है। उसके सारे अवसाद समाप्त हो जाते हैं । कठिनाई दूर हो जाती है। जब 'बीटा' तरंगें अधिक होती हैं तब आदमी अवसाद से भर जाता है। उसके सारे अवसाद समाप्त हो जाते हैं। जब 'बीटा' तरंगें अधिक होती हैं तब आदमी अवसाद से भर जाता है। उसमें उत्तेजनाएं उभरती हैं। इस प्रकार मस्तिष्कीय विद्युत् तरंगों के द्वारा आदमी कभी सुख का अनुभव करता है और कभी दुःख का अनुभव करता है। अध्यात्म की भाषा में इसे दुःख का चक्र और विज्ञान की भाषा में इसे तरंगों का चक्र कहा जाता है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में बीटा, थेटा आदि तरंगें उत्पन्न होती रहती हैं, वह चाहे अरबपति हो या सारी सुखसुविधाओं में पलता हो, वह दुःख ही दुःख भोगता चला जाता है। रांक फैलर का जीवन इसका स्पष्ट उदाहरण है । वह विश्व का महान् धनपति था। उसे धन से कभी भी सुख का अनुभव नहीं हुआ। वह अपने विशाल आर्थिक साम्राज्य को छोड़ एक वर्ष भर के लिए छुट्टियां मनाने अन्यत्र चला गया। वहां उसे धनहीनता में भी जो सुख की अनुभूति हुई, वह अनिर्वचनीय थी। आनंद का स्रोत अध्यात्म का सूत्र है कि अल्फा तरंगों को पैदा किया जाए और आनन्द को बढ़ाया जाए। उस आनन्द की इतनी वृद्धि हो कि इन्द्रियों की संवेदनाओं से होने वाली क्षणिक आनन्दानुभूति उसके सामने फीकी पड़ जाए। जब यह घटित होता है तब व्यक्ति का बाह्य आकर्षण छूटने लगता है और आंतरिक आनन्द की उपलब्धि के लिए प्रयत्न आरम्भ हो जाता है। यही दूरी को मिटाने का आदि-बिन्दु है। जब तक व्यक्ति को लगता है कि इन्द्रियजन्य आनन्द को छोड़ना बहुत बड़े आनन्द से वंचित रहना है तब तक व्यक्ति उसे छोड़ नहीं सकता । यह उसे तभी छोड़ सकता है जब वह आनन्द छोटा बन जाए, अर्थहीन बन जाए । सब यह जानते हैं कि अब्रह्मचर्य से शक्ति क्षीण होती है, उर्जा क्षीण होती है पर सभी ब्रह्मचारी कहां बन पाते हैं ? ब्रह्मचारी तब तक नहीं हुआ जा सकता जब तक उसे बड़ा आनन्द प्राप्त न हो जाए। अल्फा तरंगों का उत्पादन बड़े आनन्द को उपलब्ध करा सकता है। उस स्थिति में सारे तनाव समाप्त हो जाते हैं। मन आनन्द, सुख और शक्ति से भर जाता है। तब ऐसा अनुभव होता है कि जो प्राप्तव्य था, वह प्राप्त हो गया। उस स्थिति में न सुन्दर रूप आकर्षण पैदा करता है और न मधुर संगीत ही मन को लुभा पाता है। संगीत सुनने की अपेक्षा महसूस नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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