Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 360
________________ ३४४ चित्त और मन रोगी अपने प्राण शरीर से सारा ऑपरेशन देख रहा है। ऑपरेशन करतेकरते एक बिन्दु पर डॉक्टर ने गलती की। तत्काल ऊपर से रोगी ने कहाडॉक्टर ! यह भूल कर रहे हो । डॉक्टर को पता नहीं चला-कौन बोल रहा है । उसने भूल सुधारी । वेदना कम होते ही रोगी का प्राण शरीर पुनः स्थूल शरीर में आ जाता है। प्रोजेक्शन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। होश आने पर रोगी ने डॉक्टर से कहा, छत पर लटकते हुए मैंने पूरा ऑपरेशन देखा शरीर प्रक्षेपण की अनेक प्रक्रियाएं हैं। इन प्रक्रियाओं में प्राण शरीर बाहर चला जाता है। विचार संप्रेषण ओकल्ट साइन्स के वैज्ञानिकों ने यह तथ्य प्रगट किया कि आदमी जब तक अपने शरीर के विशिष्ट केन्द्रों को चुम्बकीय क्षेत्र नहीं बना लेता, एलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड नहीं बना लेता तब तक उसमें पारदर्शन की क्षमता नहीं जाग सकती। चैतन्य-केन्द्रों और चक्रों की सारी कल्पना का मूल उद्देश्य है-शरीर को चुम्बकीय क्षेत्र बना लेना । सहिष्णुता और समभाव वृद्धि के प्रयोग, उपवास, आसन, प्राणायाम, आतापना, सर्दी-गर्मी को सहने का अभ्याइन सारी प्रक्रियाओं से शरीर के परमाणु चुम्बकीय क्षेत्र में बदल जाते हैं और वह क्षेत्र इतना पारदर्शी बन जाता है कि उस क्षेत्र से भीतर की चेतना बाहर झांक सकती है। आज के पेरासाईकोलॉजिस्ट टलीपथी का प्रयोग करते हैं । टेलीपैथी का अर्थ है-विचार-संप्रेषण । एक आदमी कोसों की दूरी पर है। उससे बात करनी है, कैसे हो सकती है ? आज तो टेलीफोन और वायरलेस का साधन है। घर बैठा यादमी हजारों कोसों पर रहने वाले अपने व्यक्तियों से बात कर लेता है। प्राचीन काल में ये साधन नहीं थे, टेलीपैथी शब्द भी नहीं था। यह अंग्रेजी का शब्द है । उस समय विचारों को हजारों कोस दूर भेजना विचार-संप्रेषण की प्रक्रिया से होता था। जैसे एक योगी है। उसका शिष्य पांच हजार मील की दूरी पर है। योगी उसे कुछ बताना चाहता है, उससे बातचीत करना चाहता है । अब वह कैसे बात करे ? आधुनिक साधन तो थे नहीं उस समय । किंतु उस समय विचार-संप्रेषण की साधना की जाती थी जिससे विचारों का आदान प्रदान हो जाता था। अतीन्द्रिय चेतना : विकास की प्रक्रिया विकास के क्रम के अनुसार प्रत्येक प्राणी में चेतना अनावृत होती है। इन्द्रिय, मानसिक और बौद्धिक चेतना के साथ-साथ कुछ अस्पष्ट या धुंधली-सी अतीन्द्रिय चेतना भी अनावृत होती है । पूर्वाभास, विचार-संप्रेषण आदि उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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